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________________ ततीय प्रतिपत्ति :विजयदेव का उपपात और उसका अभिषेक] [४२१ सिंचन करता है, सरस गोशीर्ष चन्दन से हाथों को लिप्तकर पांचों अंगुलियों से एक मंडल बनता है, उसकी अर्चना करता है और कचग्राह ग्रहीत और करतल से विमुक्त होकर बिखरे हुए पांच वर्षों के फूलों से उसको पुष्पोपचारयुक्त करता है और धूप देता है। धूप देकर जिधर सिद्धायतन का दक्षिण दिशा का द्वार है उधर जाता है। वहां जाकर लोमहस्तक लेकर द्वारशाखा, शालभंजिका तथा व्यालरूपक का प्रमार्जन करता है, उसके मध्यभाग को सरस गोशीर्ष चन्दन से लिप्त हाथों से लेप लगाता है, अर्चना करता है, फूल चढ़ाता हैं, यावत् आभरण चढ़ाता है, ऊपर से लेकर जमीन तक लटकती बड़ी बड़ी मालाएँ रखता है और कचग्राह ग्रहीत और करतल विप्रमुक्त फूलों से पुष्पोपचार करता है, धूप देता है और जिधर मुखमण्डप का बहुमध्यभाग है वहां जाकर लोमहस्तक से प्रमार्जन करता है, दिव्य उदकधारा से सिंचन करता है, सरस गोशीर्ष चन्दन से लिप्त पंचागुलितल से मण्डल का आलेखन करता है, अर्चना करता है, कचग्राहग्रहीत और करतलविमुक्त होकर बिखरे हुए पांच वर्गों के फूलों का ढेर लगाता है, धूप देता है और जिधर मुखमण्डप का पश्चिम दिशा का द्वार है, उधर जाता है। १४२.[३] उवागच्छित्ता लोमहत्थगं गेण्हइ, गेण्हित्ता दारचेडीओ य सालभंजियाओ य वालरूवए यलोमहत्थगेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं जाव चच्चए दलयइ, दलइत्ता आसतोसत्त० कयग्गाह० धूवं दलयइ, धूवंदलइत्ता जेणेव मुहमंडवगस्स उत्तरिल्लाणं खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, सालभंजियाओ दिव्वाए उदगधाराए० सरसेणं गोसीसचंदणेणं पुप्फारुहणं जाव आसत्तोसत्त० कयग्गाह० धूवंदलयइ, जेणेव मुहमंडवस्स पुरथिमिल्लेदारेतं चेव सव्वं भाणियव्वं जावदारस्स अच्चणिया।जेणेव दाहिणिल्ले दारे तं चेव पेच्छाघरमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेवमणिपेढिया जेणेव सीहासणेतेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं गिण्हइ,गिणिहत्ता अक्खाडगंय सीहासणंय लोमहत्थगेण पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ० पुप्फारुहणं जाव धूवं दलयइ। जेणेव पेच्छाघरमण्डवस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे दारच्चणिया उत्तरिल्ला खंभपंती तहेव पुरथिमिल्ले दारे तहेव जेणेव दाहिणिल्ले दारे तहेव जेणेव चेइयथूभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं गेण्हइ, गेण्हित्ता चेइयथूभेलोमहत्थेणं पमज्जइं, दिव्वाए दगधाराए० सरसेणं० पुप्फारुहणं आसत्तोसत्त० जाव धूवं दलयइ, दलयित्ता जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेइ, करित्ता लोमहत्थगं गेण्हइ, गेण्हित्ता तं चेव सव्वं जं जिणपडिमाणं जाव सिद्धगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं वंदति णमंसइ। एवं उत्तरिल्लाए वि, एवं पुरथिमिल्लाए वि, एवं दाहिणिल्लाए वि।जेणेव चेइयरुक्खा दारविही य मणिपेढिया जेणेव महिंदज्झए दारविही, जेणेव दहिणिल्ला नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, लोमहत्थगं गेण्हइ, चेइयाओ य तिसोवाणपडिरूवए य तोरणे य सालभंजियाओ य वालरूवए यलोमहत्थगेण पमज्जइ, दिव्वाए दगधाराए सिंचइ सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिंपइ, पुण्फारुहणं जाव धूवं दलयइ, दलइत्ता सिद्धायतणं अणुप्पयाहिणं करेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, तहेव
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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