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________________ तृतीय प्रतिपत्ति :सिद्धायतन वर्णन] [४०१ देवच्छंदक (आसनविशेष) कहा गया है, जो दो योजन का लम्बा-चौड़ा और कुछ अधिक दो योजन का ऊँचा है, सर्वात्मना रत्नमय है और स्वच्छ स्फटिक के समान है। उस देवच्छंदक में जिनोत्सेधप्रमाण (उत्कृष्ट पाचं सौ धनुष, जघन्य सात हाथ) एक सौ आठ जिन-प्रतिमाएँ रखी हुई हैं। उन जिन-प्रतिमाओं का वर्णन इस प्रकार कहा गया है-उनके हस्ततल तपनीय स्वर्ण के हैं, उनके नख अंकरत्नों के हैं और उनका मध्यभाग लोहिताक्ष रत्नों की ललाई से युक्त है, उनके पांव स्वर्ण के हैं, उनके गुल्फ (टखने) कनकमय हैं, उनकी जंघाए (पिण्डलियाँ) कनकमयी हैं, इनके जानु (घुटने) कनकमय हैं, उनके ऊरु (जंघाएं) कनकमय हैं, उनकी गात्रयष्टि कनकमयी है, उनकी नाभियां तपनीय स्वर्ण की हैं, उनकी रोमराजि रिष्टरत्नों की है, उनके चूचुक (स्तनों के अग्रभाग) तपनीय स्वर्ण के हैं, उनके श्रीवत्स (छाती पर अंकित चिह्न) तपनीय स्वर्ण के हैं, उनकी भुजाएँ कनकमयी हैं, उनकी पसलियाँ कनकमयी हैं. उनकी ग्रीवा कनकमयी है, उनकी मूछे रिष्टरत्न की हैं, उनके होठ विद्रुममय (प्रवालरत्न के ) हैं, उनके दांत स्फटिकरत्न के हैं, तपनीय स्वर्ण की जिह्वाएँ हैं, तपनीय स्वर्ण की तालु हैं, कनकमयी उनकी नासिका है, जिसका मध्यभाग लोहिताक्षरत्नों की ललाई से युक्त है, उनकी आँखें अंकरत्न की हैं और उनका मध्यभाग लोहिताक्ष रत्न की ललाई से युक्त है, उनकी दृष्टि पुलकित (प्रसन्न) है, उनकी आँखों की तारिका (कीकी) रिष्टरत्नों की है, उनके अक्षिपत्र (पक्ष्म) रिष्टरत्नों के हैं, उनकी भौहैं रिष्टरत्नों की हैं, उनके गाल स्वर्ण के हैं, उनके कान स्वर्ण के हैं, उनके ललाट कनकमय हैं, उनके शीर्ष गोल वज्ररत्न के हैं, केशों की भूमि तपनीय स्वर्ण की है और केश रिष्टरत्नों के बने हुए हैं। १३९.(२) तासिंणं जिणपडिमाणं पिट्ठओ पत्तेयं पत्तेयं छत्तधारपडिमाओ पण्णत्ताओ. ताओणं छत्तधारपडिमाओ हिमरययकुंदेंदुसप्पकासाइंसकोरंटमल्लदामधवलाइंआतपत्ताइसलीलं ओहारेमाणीओ चिटुंति। तासिंणं जिणपडिमाणं उभओ पासिं पत्तेयं पत्तेयं चामरधारपडिमाओ पण्णत्ताओ।ताओणंचामरधारपडिमाओ चंदप्पहवइरवेरुलियनानामणिकणगरयणविमलमहरिहतवणिज्जुज्जलविचित्तदंडाओ चिल्लियाओ संखंककुंददगरय-अमयमथिअफेणपुंजसण्णिकासाओ, सुहुमरययदीहवालाओ धवलाओ चामराओ सलीलं ओहारेमाणीओ चिट्ठति। तासिं णं जिणपडिमाणं पुरओ दो दो नागपडिमाओ, दो दो जक्खपडिमाओ, दो दो भूतपडिमाओ दो दो कुंडधारपडिमाओ (विणयोवणयाओ पायवडियाओ पंजलिउडाओ) सण्णिक्खित्ताओ चिटुंति, सव्वरयणामईओ, अच्छाओ सण्हाओ लण्हाओ घट्ठाओ मट्ठाओ णीरयाओ णिप्पंकाओ जाव पडिरूवाओ। तासिं णं जिणपडिमाणं पुरओ अट्ठसयं घंटाणं, अट्ठसयं चंदणकलसाणं एवं अट्ठसयं भिंगारगाणं, एवं आयंसगाणं थालाणं सुपइट्ठकाणं मणोगुलियाणं वातकरगाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं हयकंठगाणं जाव उसभकंठगाणं पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाणं अट्ठसयं तेलसमुग्गाणं जाव धूवकडुच्छुयाणं सण्णिक्खित्तं चिट्ठइ। तस्स णं सिद्धायतणस्स उप्पिं बहवे अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता उत्तिमागारा
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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