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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
तीसे णं मणिपेढियाए उप्पिं एत्थ णं एगे महं सीहासणे पण्णत्ते। सीहासणवण्णओ।
तस्सणं माणवगस्स चेइयखंभस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं एगा महा मणिपेढिया पण्णत्ता, जोयणं आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा। तीसे णं मणिपेढियाए उप्पिं एत्थणं एगे महं देवसयणिज्जे पण्णत्ते।तस्स णं देवसयणिज्जस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते,तं जहा-णाणामणिमया' पडिपाया, सोवणिया पाया,णाणामणिमया, पायसीसा, जंबूणदमयाइं गत्ताई वइरामया संधी णाणामणिमए विच्चे, रययामया तूली, लोहियक्खमया बिव्वोयणा तवणिज्जमई गंडोवहाणिया।
से णं देवसयणिज्जे उभओ बिव्वोयणे दुहओ उण्णए माझे णयगंभीरे सालिंगणवट्टिए गंगापुलिणवालुउद्दालसारिसए ओयवियक्खोमदुगुल्लपट्टपडिच्छायणे सुविरचियरयत्ताणे रत्तंसुयसंबुए सुरम्मे आईणगरूयवूरणवणीयतूलफासमउए पासाईए।
तस्स णं देवसयणिज्जस्स उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं महई एगा मणिपेढिया पण्णत्ता जोयणमेगं आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई जाव अच्छा। तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि एगं महं खुड्डए महिंदज्झए पण्णत्ते, अट्ठमाइं जोयणाई उटुं उच्चत्तेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं वेरुलियामयवट्टलट्ठसंठिए तहेव जाव मंगलगा झया छत्ताइछत्ता।
तस्स णं खुड्डमहिंदज्झयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स चुप्पालए नाम पहरणकोसे पण्णत्ते। तत्थ णं विजयस्स देवस्स फलिहरयणपामोक्खा बहवे पहरणरयणा सन्निक्खित्ता चिटुंति, उज्जलसुणिसियसुतिक्खधारा पासाईया। तीसे णं सभाए सुहम्माए उप्पिं बहवे अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता।
[१३८] उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के ठीक मध्यभाग में एक मणिपीठिका कही गई है। वह मणिपीठिका दो योजन लम्बी-चौड़ी, एक योजन मोटी और सर्वमणिमय है। उस मणिपीठिका के ऊपर माणवक नामक चैत्यस्तम्भ कहा गया है। वह साढे सात योजन ऊँचा, आधा कोस ऊँडा और आधा कोस चौड़ा है। उसकी छह कोटियाँ हैं, छह कोण है और छह भाग हैं, वह वज्र का है, गोल है और सुन्दर आकृति वाला है, इस प्रकार महेन्द्रध्वज के समान वर्णन करना चाहिए यावत् वह प्रासादीय (यावत् प्रतिरूप) है। उस माणवक चैत्यस्तम्भ के ऊपर छह कोस ऊपर और छह कोस नीचे छोड़ कर बीच के साढे चार योजन में बहुत से सोने-चांदी के फलक कहे गये है। उन सोने चांदी के फलकों में बहुत से वज्रमय नागदन्तक हैं। उन वज्रमय नागदन्तकों में बहुत से चांदी के छीकें कहे गये है। उन रजतमय छींकों में बहुत-से वज्रमय गोल-वर्तुल समुद्गक (मंजूषा) कहे गये है। उन वज्रमय गोल-वर्तुल समुद्गकों में बहुत सी जिन-अस्थियाँ रखी हुई हैं। वे विजयदेव और अन्य बहुत से वानव्यन्तर देव और देवियों के लिए अर्चनीय, वन्दनीय, पूजनीय, सत्कारयोग्य, सन्मानयोग्य, कल्याणरूप, मगंलरूप, देवरूप, चैत्यरूप, और पर्युपासनायोग्य हैं। उस माणवक
१. 'णाणा मणिमया पायसीसा' यह पाठ वृत्ति में नहीं है।