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________________ तृतीय प्रतिपत्ति :सुधर्मा सभा का वर्णन] [३९७ त्रिसोपानप्रतिरूपकों का वर्णनक कहना चाहिए। तोरणों का वर्णन यावत् छत्रों पर छत्र हैं। उस सुधर्मा सभा में छह हजार मनोगुलिकाएँ (बैठक) कही गई हैं, यथा-पूर्व में दो हजार, पश्चिम में दो हजार, दक्षिण में एक हजार और उत्तर में एक हजार। उन मनोगुलिकाओं में बहुत से सोने चांदी के फलक (पाटिये) हैं। उन सोने-चांदी के फलकों में बहुत से वज्रमय नागदंतक (खूटियां) हैं। उन वज्रमय नागदन्तकों में बहुत सी काले सूत्र में पिरोई हुई गोल और लटकती हुई पुष्पमालाओं के समुदाय हैं यावत् सफेद डोरे में पिरोई हुई गोल और लटकती हुई पुष्पमालाओं के समुदाय हैं। वे पुष्पमालाएँ सोने के लम्बूसक (पेन्डल) वाली हैं यावत् सब दिशाओं को सुगन्ध से भरती हुई स्थित हैं। ___ उस सुधर्मा सभा में छ हजार गोमाणसियां (शय्यारूप स्थान) कही गई हैं, यथा-पूर्व में दो हजार, पश्चिम में दो हजार, दक्षिण में एक हजार और उत्तर में एक हजार। उन गोमाणसियों में बहुत-से सोने -चांदी के फलक हैं, उन फलकों में बहुत से वज्रमय नागदन्तक हैं, उन वज्रमय नागदन्तकों में बहुत से चांदी के सींके हैं। उन रजतमय सींकों में बहुत-सी वैडूर्यरत्न की धूपघटिकाएँ कही गई हैं। वे धूपघटिकाएं काले अगर श्रेष्ठ कुंदुरुक्क और लोभान के धूप की नाक और मन को तृप्ति देवे वाली सुगन्ध से आसपास के क्षेत्र को भरती हुई स्थित हैं। उस सुधर्मा सभा में बहुसमरमणीय भूमिभाग कहा जाता है। यावत् मणियों का स्पर्श, भीतरी छत, पद्मलता आदि के विविध चित्र आदि का वर्णन करना चाहिए। यावत् वह भूमिभाग तपनीय स्वर्ण का है, स्वच्छ है और प्रतिरूप है। १३८. तस्सणंबहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थणंएगा मणिपीढिया पण्णत्ता। साणं मणिपीढिया दो जोयणाई आयामविक्खंभेणंजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमया। तीसे णं मणिपीढियाए उप्पिं एत्थ णं माणवए णाम चेइयखंभे पण्णत्ते, अद्धदमाई जोयणाई उर्दू उच्चत्तेणं अद्धकोसं उव्वेहेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं छकोडीए छलंसे छविग्गहिए वइरामयवट्टलट्ठसंटिए, एवं जहा महिंदज्झयस्स वण्णओ जाव पासाईए। तस्स णं माणवगस्स चेइयखंभस्स उवरि छक्कोसे ओगाहित्ता हेट्ठावि छक्कोसे वजित्ता मज्झे अद्धपंचमेसु जोयणेसु एत्थ णं बहवे सुवण्णरुप्पमया फलगा पण्णत्ता।तेसुणंसुवण्णरुप्पमएसुफलगेसुबहवेवइरामया णागदंता पण्णत्ता। तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वइरामया गोलवट्टसमुग्गका पण्णत्ता; तेसु णं वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहवे जिणसकहाओ सन्निक्खित्ताओ चिटुंति। जाओ णं विजयस्स देवस्स अण्णेहिं च बहूणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण यअच्चणिज्जाओ वंदणिज्जाओ पूयणिज्जाओ सक्कारणिज्जाओ सम्माणणिज्जाओकल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जाओ।माणवगस्स णं चेइयखंभस्स उवरिं अट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता। तस्स णं माणवगस्स चेइयखंभस्स पुरच्छिमेणं एत्थ णं एगा महामणिपेढिया पण्णत्ता। साणं मणिपेढियादो जोयणाइं आयामविक्खंभेणंजोयणं बाहल्लेणंसव्वमणिमई जावपडित्वा।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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