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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : जम्बूद्वीप के द्वारों की संख्या] [३७३ हैं, अनेक मालाएँ उन्हें पहनायी गई हैं, उनकी कमर इतनी पतली है कि मुट्ठी में आ सकती है। उनके पयोधर (स्तन) समश्रेणिक चुचुकयुगल से युक्त हैं, कठिन होने से गोलाकार हैं, ये सामने की ओर उठे हुए हैं, पुष्ट हैं अतएव रति-उत्पादक हैं, इन पुतलियों के नेत्रों के कोने लाल हैं, उनके बाल काले हैं तथा कोमल हैं, विशद-स्वच्छ हैं, प्रशस्त लक्षणवाले हैं और उनका अग्रभाग मुकुट से आवृत है। ये पुतलियाँ अशोकवृक्ष का कुछ सहारा लिये हुए खड़ी हैं । वामहस्त से इन्होंने अशोक वृक्ष की शाखा के अग्रभाग को पकड़ रखा है। ये अपने तिरछे कटाक्षों से दर्शकों के मन को मानो चुरा रही हैं। परस्पर के तिरछे अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि मानो ये (एक दूसरे के सौभाग्य को सहन न करती हुई) एक दूसरी को खिन्न कर रही हों। ये पुत्तलिकाएँ पृथ्वीकाय का परिणामरूप हैं और शाश्वत भाव को प्राप्त हैं। इन पुतलियों का मुख चन्द्रमा जैसा है। ये चन्द्रमा की भांति शोभा देती हैं, आधे चन्द्र की तरह उनका ललाट है, उनका दर्शन चन्द्रमा से भी अधिक सौम्य है, उल्का (मूल से विच्छिन्न जाज्वल्यमान अग्निपुंज-चिनगारी) के समान ये चमकीली हैं, इनका प्रकाश बिजली की प्रगाढ़ किरणों और अनावृत सूर्य के तेज से भी अधिक है। उनकी आकृति शृंगार-प्रधान है और उनकी वेशभूषा बहुत ही सुहावनी है। ये प्रसन्नता पैदा करने वाली, दर्शनीया, अभिरूपा और प्रतिरूपा हैं। ये अपने तेज से अतीव अतीव सुशोभित हो रही हैं। १२९. (४) विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो जालकडगा पण्णत्ता। ते णं जालकडगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। विजयस्सणंदारस्स उभओ पासिंदुहओ णिसीहियाए दोदो घंटापरिवाडीओ पण्णत्ताओ। तासि णंघंटाणं अयमेयारूवेवण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-जंबूणयमईओघंटाओ, वइरामईओ लालाओ णाणामणिमया घंटापासगा, तवणिज्जमईओ संकलाओ रययामईओ रज्जूओ।ताओ णं घंटाओ ओहस्सराओ मेहस्सराओ हंसस्सराओ कोंचस्सराओ णंदिस्सराओ णंदिघोसाओ सीहस्सराओ सीहघोसाओ मंजुस्सराओ मंजुघोसाओ सुस्सराओ सुस्सरणिग्घोसाओ ते पएसे ओरालेणं मणुण्णेणं कण्णमणनिव्वुइकरेणं सद्देण जाव चिटुंति। विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो वणमालापरिवाडीओ पण्णत्ताओ।ताओणं वणमालाओणाणादुमलयाकिसलयपल्लवसमाउलाओ छप्पयपरभुिज्जमाण कमलसोभंतसस्सिरीयाओ पासाइयाओ० ते पएसे उरालेण जाव गंधेणं आपूरेमाणीओ जाव चिट्ठति। [१२९] (४) उस विजयद्वार के दोनों तरफ दो नैषेधिकाओं में दो दो जालकटक (जालियों वाले रम्य स्थान) कहे गये हैं। ये जालकटक सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं। उस विजयद्वार के दोनों तरफ दो नैषेधिकाओं में दो घंटाओं की पंक्तियां कही गई हैं। उन घंटाओं का वर्णनक इस प्रकार है-वे घंटाएं सोने की बनी हुई हैं, वज्ररत्न की उनकी लालाएँ-लटकन हैं, अनेक मणियों से बने हुए घंटाओं के पार्श्वभाग हैं, तपे हुए सोने की उनकी सांकलें हैं, घंटा बजाने के लिए खींची जाने वाली रज्जु चांदी की बनी हुई है। इन घंटाओं का स्वर ओघस्वर है-अर्थात् एक बार बजाने पर बहुत
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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