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________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र उन नागदन्तकों में बहुत सी काले डोरे में पिरोयी हुई पुष्पमालाएँ लटक रहीं हैं, बहुत सी नीले डोरे में पिरोयी हुई पुष्पमालाएँ लटक रही हैं, यावत् शुक्ल वर्ण के डोरे में पिरोयी हुई पुष्पमालाएँ लटक रही हैं। उन मालाओं में सुवर्ण का लंबूसक (पेन्डल- लटकन) है, आजू-बाजू वे स्वर्ण प्रतरक से मण्डित हैं, नाना प्रकार के मणि रत्नों के विविध हार और अर्धहारों से वे मालाओं के समुदाय सुशोभित हैं यावत् श्री से अतीव अतीव सुशोभित हो रही हैं । ३७२ ] 1 उन नागदंतकों के ऊपर अन्य दो और नागदंतकों की पंक्तियां हैं। वे नागदन्तक मुक्ताजालों के अन्दर लटकती हुई स्वर्ण की मालाओं और गवाक्ष की आकृति की रत्नमालाओं और छोटी छोटी घण्टिकाओं (घुंघरूओं) से युक्त हैं यावत् हे आयुष्मन् श्रमण ! वे नागदन्तक बड़े बड़े गजदन्त के समान कहे गये हैं। उन नागदन्तकों में बहुत से रजतमय छींके कहे गये हैं । उन रजतमय छींकों में वैडूर्यरन की धूपघटिकाएँ (धूपनियाँ) हैं। वे धूपघटिकाएँ काले अगर, श्रेष्ठ चीड और लोभान के धूप की मघमघाती सुगन्ध के फैलाव से मनोरम हैं, शोभन गंध वाले पदार्थों की गंध जैसी सुगंध उनसे निकल रही है, वे सुगन्ध की टिका जैसी प्रतीत होती हैं। वे अपनी उदार (विस्तृत), मनोज्ञ और नाक एवं मन को तृप्ति देने वाली सुगंध से आसपास के प्रदेशों को व्याप्त करती हुई अतीव सुशोभित हो रही हैं। १२९. (३) विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाएं दो दो सालभंजियापरिवाडीओ पण्णत्ताओ, २ ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुपइट्ठियाओ सुअलंकियाओ णाणागारवसणओ णाणामल्लपिणद्धिओ मुट्ठिगेज्झमज्झाओ आमेलगजमलजुयलवट्टिअब्भुण्णयपीणरइयसंठियपओहराओ रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउविसदपसत्थलक्खणसंवेल्लितग्गसिरयाओ, ईसिं असोगवरपादवसमुट्ठियाओ वामहत्थगहीयग्गसालाओ ईसिं अद्धच्छिकडक्खविद्धिएहिं लूसेमाणीओ इव चक्खुल्लोयणलेसाहिं अण्णमण्णं खिज्जमाणीओ इव पुढविपरिणामाओ सासयभावमवगयाओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमनिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का इव उज्जोएमाणीओ विज्जुघणमरीचि - सूरदिप्पंततेयअहिययरसन्निकासाओ सिंगारागारचारुवेसाओ पासाइयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ तेयसा अतीव अतीव सोभेमाणीओ सोभेमाणीओ चिट्ठति । [१२९] (३) उस विजयद्वार के दोनों ओर नैषेधिकाओं में दो दो सालभंजिकाओं (पुतलियों) की पंक्तियां कही गई हैं। वे पुतलियाँ लीला करती हुई ( सुन्दर अंगचेष्टाएँ करती हुई) चित्रित की गई हैं, सुप्रतिष्ठित-सुन्दर ढंग से स्थित की गई हैं, ये सुन्दर वेशभूषा से अलंकृत हैं, ये रंगबिरंगे कपड़ों से सज्जित १. किन्हीं प्रतियों में ' रयणमय' पाठ है। तदनुसार रत्नमय छींके हैं. वृत्ति में रत्नमय अर्थ किया गया है। २. वृत्ति के अनुसार सालभंजिकाओं के वर्णन का पाठ इस प्रकार है-ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुपयट्ठियाओ सुअलंकियाओ णाणाविहरागवसणाओ रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउविसयपसत्थलक्खणसंवेल्लियग्गसिरयाओ नानामलपिणद्धाओ मुट्ठिगेज्झमज्झाओ आमेलगजमलवट्टियअब्भुण्णयरइयसंठियपयोहराओ ईसिं असोगवरपायवसमुट्ठियाओ...... ।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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