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________________ ३५०] [जीवाजीवाभिगमसूत्र पैदा करने वाली हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं। (उस पद्मवरवेदिका में स्थान-स्थान पर बहुत से स्वस्तिक कहे गये हैं, जो सर्वरत्नमय और स्वच्छ हैं।) हे भगवन् ! पद्मवरवेदिका को पद्मवरवेदिका क्यों कहा जाता हैं ? गौतम ! पद्मवरवेदिका में स्थान-स्थान पर वेदिकाओं (बैठने योग्य मत्तवारणरूप स्थानों) में, वेदिका के आजू-बाजू में, दो वेदिकाओं के बीच के स्थानों में, स्तम्भों के आसपास, स्तम्भों के ऊपरी भाग पर, दो स्तम्भों के बीच के अन्तरों में, दो पाटियों को जोड़नेवाली सूचियों पर, सूचियों के मुखों पर, सूचियों के नीचे और ऊपर, दो सूचियों के अन्तरों में, वेदिका के पक्षों में, पक्षों के एक देश में, दो पक्षों के अन्तराल में बहुत सारे उत्पल (कमल), पद्म (सूर्यविकासी कमल), कुमुद, (चन्द्रविकासी कमल), नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुण्डरीक (श्वेतकमल), महापुण्डरीक (बड़े श्वेतकमल), शतपत्र, सहस्रपत्र आदि विविध कमल विद्यमान हैं। वे कमल सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् अभिरूप हैं, प्रतिरूप हैं। ये सब कमल वर्षाकाल के समय लगाये गये बड़े छत्रों (छतरियों) के आकार के हैं । हे आयुष्मन् श्रमण ! इस कारण से पद्मवरवेदिका को पद्मवरवेदिका कहा जाता है। हे भगवन् ! पद्मवरवेदिका शाश्वत है या अशाश्वत है ? गौतम ! वह कथञ्चित् शाश्वत है और कथञ्चित् अशाश्वत है। हे भगवन्! ऐसा क्यों कहा जाता हैं कि पद्मवखेदिका कथञ्चित् शाश्वत है और कथञ्चित् अशाश्वत है ? गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत है और वर्णपर्यायों से, रसपर्यायों से, गंधपर्यायों से, और स्पर्शपर्यायों से अशाश्वत है। इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता हैं कि पद्मवरवेदिका कथञ्चित् शाश्वत है और कथञ्चित् अशाश्वत है। हे भगवन् ! पद्मवरवेदिका काल की अपेक्षा कब तक रहने वाली है ? गौतम ! वह 'कभी नहीं थी'-ऐसा नहीं है 'कभी नहीं है' ऐसा नहीं है, 'कभी नहीं रहेगी' ऐसा नहीं है। वह थी, है और सदा रहेगी। वह ध्रुव है, नियत हैं, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है। यह पद्मवरवेदिका का वर्णन हुआ। वनखण्ड-वर्णन १२६. [१] तीसे णं जगईए उप्पिं बाहिं पउमवरवेदियाए एत्थ णं एगे महं वनसंडे पण्णत्ते, देसूणाइंदोजोयणाइंचक्कवालविक्खंभेणंजगतीसमए परिक्खेवेणं किण्हे किण्होभासे जाव [ ते णं पायवा मूलवंता कंदवंता खंधवंता तयावंता सालवंता पवालवंता पत्तपुप्फफलबीयवंता अणुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एगखंधी अणेगसाहप्पसाहविडिमा, अणेगणरव्वामसुपसारियगेज्झ-घणविउलवट्टखंधा अच्छिद्दपत्ता अविरलपत्ता अवाईणपत्ता अणईपत्ता णिधूयजरढपंडुरपत्ता, नवहरियभिसंतपत्तंधयारगंभीरदरिसणिज्जा उवविणिग्गयणव
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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