SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४८] [जीवाजीवाभिगमसूत्र असोग० चंपग० चूयवण वासंति० अतिमुत्तग० कुंदलयाओ सामलयाओ णिच्चं कुसुमियाओ जाव सुविहत्तपिंडमंजरिवडिंसकधरीओ सव्वरयणामईओ सण्हाओ लण्हाओ घट्ठाओ मट्ठाओ णीरयाओ णिशाओणिक्कंकडच्छयाओ सप्पभाओ समिरीयाओ सउज्जोयाओ पासाईयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ।[ तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे अक्खयसोत्थिया पण्णत्ता सव्वरयणामया अच्छा।] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-पउमवरवेइया पउमवरवेइया ? गोयमा ! पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं वेदियासु वेदियाबाहासु वेदियासीसफलएसुवेदियापुडंतरेसुखंभेसुखंभबाहासुखंभसीसेसुखंभपुडंतरेसुसूईसु सूईमुहेसु सूईफलएसु सूईपुडंतरेसु पक्खेसु पक्खबाहासु पक्खपेरंतरेसु बहूइं उप्पलाई पउमाई जाव सयसहस्सपत्ताई सव्वरयणामयाइं अच्छाई सण्हाइं लण्हाइं घट्ठाई मट्ठाई णीरयाई णिम्मलाई निप्पंकाई निक्कंकडच्छायाइं सप्पभाई समिरीयाई सउज्जोयाई पासादीयाई दरिसणिज्जाई अभिरूवाइं पडिरूवाइं महया महया बासिक्कच्छत्तसमयाइं पण्णत्ताईसमणाउसो ! से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ पउमवरवेइया पउमवरवेइया। पउमवरवेइया णं भंते ! किं सासया असासया? गोयमा !सिय सासया सिय असासया। से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ-सिय सासया सिय असासया ? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासया; वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपजवेहिं फासपजवेहिं असासया; से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-सिय सासया सिय असासया। पउमवरवेइया णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! ण कयावि णासी, ण कयाविणत्थि, ण कयावि न भविस्सइ। भुविंच, भवइ य, भविस्सइ य।धुवा नियया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिच्चा पउमवरवेदिया॥ (१२५) उस जगती के ऊपर ठीक मध्यभाग में एक विशाल पद्मवरवेदिका कही गई है। वह पद्मवरवेदिका आधा योजन ऊंची और पांच सौ धनुष विस्तार वाली है। वह सर्वरत्नमय है। उसकी परिधि जगती के मध्यभाग की परिधि के बराबर है। यह पद्मवरवेदिका सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है, यावत् अभिरूप, प्रतिरूप है। उस पद्मवरवेदिका का वर्णन इस प्रकार है-उसके नेम (भूमिभाग के ऊपर निकले हुए प्रदेश) वज्ररत्न के बने हुए हैं, उसके मूलपाद (मूलपाये) रिष्टरत्न के बने हुए हैं, इसके स्तम्भ वैडूर्यरत्न के हैं, उसके फलक (पटिये) सोने चाँदी के हैं, उसकी संधियाँ वज्रमय हैं, लोहिताक्षरत्न की बनी उसकी सूचियाँ हैं (ये सूचियाँ पादुकातुल्य होती हैं जो पाटियों को जोड़े रखती हैं, विघटित नहीं होने देती)। यहाँ जो मनुष्यादि शरीर के चित्र बने हैं वे अनेक प्रकार की मणियों से बने हुए हैं तथा स्त्री-पुरुष युग्म की जोड़ी के जो चित्र बने हुए हैं वे भी अनेकविध मणियों के बने हुए हैं। मनुष्यचित्रों के अतिरिक्त जो चित्र बने हैं वे सब अनेक प्रकार की मणियों से बने हुए हैं। अनेक जीवों की जोड़ी के चित्र भी विविध मणियों से बने हुए हैं। उसके
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy