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________________ [ ३४७ तृतीय प्रतिपत्ति: पद्मवरवेदिका का वर्णन] यह जगती एक जालकटक से घिरी हुई है । जैसे भवन की भित्तियों में झरोखे और रोशनदान होते हैं वैसी जालियां जगह-जगह सब ओर बनी हुई हैं । यह जालसमूह दो कोस ऊंचा और पांच सौ धनुष का विस्तार वाला है । यह प्रमाण एक जाली का है। यह जालकटक ( जाल - समूह ) सर्वात्मना रत्नमय है, स्वच्छ है, शलक्ष्ण है और मृदु है, यावत् यह अभिरूप और प्रतिरूप है । यहाँ यावत् पद से 'घट्टे मट्ठे नीरए निम्मले निप्पंके निक्कंकडच्छाए सप्पभे समरीए सउज्जोए पासाइए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे' का ग्रहण किया गया है । पद्मवरवेदिका का वर्णन १२५. तीसे णं जगतीए उप्पिं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगा महई पउमवरवेदिया पण्णत्ता । साणं पउमवरवेदिया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं पंच धणुसयाइं विक्खंभेणं (सव्वरयणामए) जगतीसमिया परिक्खेवेणं सव्वरयणामई० । तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - वइामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियमया खंभा सुवण्णरुप्पमया फलगा वइरामया संधी लोहितक्खमईओ सूईओ णाणामणिमया कलेवरा कलेवरसंघाडा णाणामणिमया रूवा नाणामणिमया रूवसंघाडा अंकामया पक्खा पक्खबाहाओ जोतिरसामया वंसा वंसकवेलुया य रययामईओ पट्टियाओ जातरूवमईओ ओहाडणीओ वइरामईओ उवरिपुञ्छणीओ सव्वसेए रययामए छादणे। सा णं पउंमवरवेइया एगमेगेणं हेमजालेणं एगमेगेणं गवक्खजालेणं एगमेगेणं खिंखिणिजाणं जाव मणिजालेणं (कणयजालेणं रयणजालेणं) एगमेगेणं पउमवरजालेणं सव्वरयणामएणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता । ते णं जाला तवणिज्जलंबूसगा सुवण्णपयरगमंडिया णाणामणिरयणविविहहारद्धहारउवसोभितसमुदया ईसिं अण्णमण्णमसंपत्ता पुव्वावरदाहिणउत्तरागएहिं वाएहिं मंदागं मंदागं एज्जमाणा एज्जमाणा कंपिज्जमाणा २ लंबमाणा २ पझंझमाणा २ सद्दायमाणा २ तेणं ओरालेणं मणं कण्णमणणिव्वइकरेणं सद्देणं सव्वओ समंता आपूरेमाणा सिरीए अतीव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठति । तीस णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे हयसंघाडा गयसंघाडा नरसंघाडा किण्णरसंघाडा किंपुरिससंघाडा महोरगसंघाडा गंधव्वसंघाडा वसहसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा सहा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा । तीसे णं पउमवरवेड्याए तत्थ तत्थ देसे तर्हि बहवे हयपंतीओ तहेव जाव पडिरूवाओ । एवं हवीहीओ जाव पडिरूवाओ । एवं हयमिहुणाई जाव पडिरूवाइं । तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तर्हि तहिं बहवे पउमलयाओ नागलयाओ एवं
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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