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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
(६) किंपुरुषों के दो इन्द्र-सत्पुरुष और महापुरुष (७) महोरगों के दो इन्द्र-अतिकाय और महाकाय (८) गन्धर्षों के दो इन्द्र-गीतरति और गीतयश
उक्त दो-दो इन्द्रों में से प्रथम दक्षिणशिावर्ती देवों का इन्द्र हैं और दूसरा उत्तरदिशावर्ती वानव्यन्तर देवों का इन्द्र है। यहाँ वानव्यन्तर देवों का अधिकार पूरा होता है। आगे ज्योतिष्क देवों की जानकारी दी गई है। ज्योतिष्क देवों के विमानों का वर्णन
१२२. कहिं णं भंते ! जोइसियाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता ? कहिं णं भंते जोइसिया देवा परिवसंति?
गोयमा ! उप्पिं दीवसमुद्दाणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तणउए जोयणसए उड्ढं उप्पइत्ता दसुत्तरसया जोयणबाहल्लेणं, तत्थ णंजोइसियाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा जोतिसियविमाणावाससयसहस्सा भवंतीतिमक्खायं।
तेणं विमाणा अद्धकविट्ठकसंठाणसंठिया एवं जहा ठाणपदे जाव चंदिमसूरिया य तत्थ णं जोइसिंदा जोइसरायाणो परिवसंति महिड्डिया जाव विहरंति।
सरस्स णं भंते ! जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति परिसाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा ! तिण्णि परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-तुंबा, तुडिया, पेच्चा। अभितरिया तुंबा, मज्झिमिया, तुडिया, बाहिरिया पेच्चा। सेसं जहा कालस्स परिमाणं ठिई वि।अट्ठो जहा चमरस्स। चंदस्स वि एवं चेव।
[२२] हे भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के विमान कहाँ कहे गये हैं। हे भगवन् ! ज्योतिष्क देव कहाँ रहते हैं ?
गौतम ! द्वीपसमुद्रों से ऊपर और इस रत्नप्रभापृथ्वी के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से सात सौ नब्बे योजन ऊपर जाने पर एक सौ दस योजन प्रमाण ऊँचाईरूप क्षेत्र में तिरछे ज्योतिष्क देवों के असंख्यात लाख विमानावास कहे गये हैं। (ऐसा मैने और अन्य पूर्ववर्ती तीर्थंकरों ने कहा है)।
ये विमान आधे कबीठ के आकार के हैं-इत्यादि जैसा वर्णन स्थानपद में किया है वैसा यहाँ भी कहना यावत् वहाँ ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र और सूर्य दो इन्द्र रहते हैं जो महर्द्धिक यावत् दिव्यभोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं।
हे भगवन् ! ज्येतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज सूर्य की कितनी परिषदाएँ हैं ?
गौतम ! तीन परिषदाएँ कही गई हैं, यथा-तुंबा, त्रुटिता और प्रेत्या। आभ्यन्तर परिषदा का नाम तुंबा है, मध्यम परिषदा का नाम त्रुटिता है और बाह्य परिषद् का नाम प्रेत्या है। शेष वर्णन काल इन्द्र की तरह जानना। उनका परिमाण (देव-देवी संख्या) और स्थिति भी वैसी ही जानना चाहिए। परिषद् का अर्थ चमरेन्द्र की तरह जानना चाहिए।