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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : वानव्यन्तरों का अधिकार] [३४१ वह पिशाचेन्द्र पिशाचराज काल तिरछे असंख्यात भूमिगृह जैसे लाखों नागरावासों का, चार हजार सामानिक देवों का, चार अग्रमहिषियों का, तीन परिषदों का, सात सेनाओं का, सात सेनाधिपतियों का सोलह हजार आत्मरक्षक देवों का और बहुत से दक्षिणदिशा के वाणव्यन्तर देवों और देवियों का आधिपत्य करता हुआ विचरता है। पिशाचेन्द्र पिशाचराज काल की तीन परिषदाएं हैं-ईशा, त्रुटिता और दृढरथा। आभ्यन्तर परिषद् को ईशा कहते हैं, मध्यम परिषद् को त्रुटिता और बाह्य परिषद को दृढरथा कहा जाता है। आभ्यन्तर परिषद् में देवों की संख्या आठ हजार है, मध्यम परिषद् में दस हजार देव हैं और बाह्य परिषद् में बारह हजार देव हैं। तीनों परिषदों में देवियों की संख्या एक सौ-एकसौ है। उनकी स्थिति इस प्रकार हैआभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति आधे पल्योपम की है। मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति देशोन आधे पल्योपम की है। बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति कुछ अधिक पाव पल्योपम की है। आभ्यन्तर परिषद् की देवी की स्थिति कुछ अधिक पाव पल्योपम की है। मध्यम परिषद की देवी की स्थिति पाव पल्योपम की है। बाह्य परिषद् की देवी की स्थिति देशोन पाव पल्योपम की है। परिषदों का अर्थ आदि वक्तव्यता जैसे चमरेन्द्र के विषय में कही गई है वही सब यहां समझना चाहिए। उत्तरवर्ती पिशाचकुमार देवों की वक्तव्यता भी दक्षिणात्य जैसी ही है। उनका इन्द्र महाकाल है। काल के समान ही महाकाल की वक्तव्यता भी है। इसी प्रकार की वक्तव्यता भूतों से लेकर गन्धर्वदेवों के इन्द्र गीतयश तक की है। इस वक्तव्यता में अपने-अपने इन्द्रों को लेकर भिन्नता है। इन्द्रों की भिन्नता दो गाथाओं में इस प्रकार कही गई है - (१) पिशाचों के दो इन्द्र-काल और महाकाल (२) भूतों के दो इन्द्र-सुरूप और प्रतिरूप (३) यक्षों के दो इन्द्र-पूर्णभद्र और माणिभद्र (४) राक्षसों के दो इन्द्र-भीम और महाभीम (५) किन्नरों के दो इन्द्र-किन्नर और किंपुरुष १. काले य महाकाले सुरूव-पडिरूव पुण्णभद्दे य। अमरवइ माणिभद्दे भीमे य तहा महाभीमे ॥१॥ किनर किंपुरिसे खलु सप्पुरिसे खलु तहा महापुरिसे। अइकाय महाकाए गीयरई चेव गीतजसे ॥२॥
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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