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________________ ३१६ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र का कचरा, पत्तों का कचरा, अशुचि, सडांध, दुर्गन्ध और अपवित्र पदार्थ हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक द्वीप में उक्त स्थाणु आदि नहीं हैं। वह द्वीप स्थाणु-कंटक-हीरक, कंकर-तृणकचरा, पत्रकचरा, अशुचि, पूति, दुर्गन्ध और अपवित्रता से रहित है। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में डांस, मच्छर, पिस्सू, जूं, लीख, माकण (खटमल) आदि हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वह द्वीप डांस, मच्छर, पिस्सू, जूं, लीख, खटमल से रहित है। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में सर्प, अजगर और महोरग हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! वे हैं तो सही परन्तु परस्पर या वहाँ के लोगों को बाधा-पीड़ा नहीं पहंचाते हैं। वे व्यालगण (सर्पादि) स्वभाव से ही भद्रिक होते हैं। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में (अनिष्टसूचक) दण्डाकार ग्रहसमुदाय, मूसलाकार ग्रहसमुदाय, ग्रहों के संचार की ध्वनि, ग्रहयुद्ध (दो ग्रहों का एक स्थान पर होना) ग्रहसंघाटक (त्रिकोणाकार ग्रहसमुदाय), ग्रहापसव (ग्रहों का वक्री होना), मेघों का उत्पन्न होना, वृक्षाकार मेघों का होना, सन्ध्यालाल-नीले बादलों का परिणमन, गन्धर्वनगर (बादलों का नगरादि रूप में परिणमन), गर्जना, बिजली चमकना, उल्कापात (बिजली गिरना), दिग्दाह (किसी एक दिशा का एकदम अग्निज्वाला जैसा भयानक दिखना), निर्घात (बिजली का कड़कना), धूलि बरसना, यूपक (सन्ध्याप्रभा और चन्द्रप्रभा का मिश्रण होने पर सन्ध्या का पता न चलना), यक्षादीप्त (आकाश में अग्निसहित पिशाच का रूप दिखना), धूमिका (धुंधर), महिका (जलकणयुक्त धूंधर), रज-उद्घात (दिशाओं में धूल भर जाना), चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण चन्द्र के आसपास मण्डल का होना, सूर्य के आसपास मण्डल का होना, दो चन्द्रों का दिखना, दो सूर्यों का दिखना, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य (इन्द्रधनुष का टुकड़ा), अमोघ (सूर्यास्त के बाद सूर्यबिम्ब से निकलने वाली श्यामादि वर्ण वाली रेखा), कपिहसित (आकाश में होने वाल भयंकर शब्द), पूर्ववात, पश्चिमवात यावत् शुद्धवात, ग्रामदाह, नगरदाह, यावत् सन्निवेशदाह (इनसे होने वाले) प्राणियों का क्षय, जनक्षय, कुलक्षय, धनक्षय आदि दुःख और अनार्य-उत्पात आदि वहाँ होते हैं क्या ? है गौतम ! उक्त सब उपद्रव वहाँ नहीं होते हैं। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में डिंब (स्वदेश का विप्लव), डमर (अन्य देश द्वारा किया गया उपद्रव), कलह (वाग्युद्ध), आर्तनाद, मात्सर्य, वैर, विरोधीराज्य आदि हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! ये सब नहीं हैं। वे मनुष्य डिंब-डमर-कलह-बोल-क्षार-वैर और विरुद्धराज्य के उपद्रवों से रहित हैं। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में महायुद्ध, महासंग्राम महाशस्त्रों का निपात, महापुरुषों (चक्रवर्तीबलदेव-वासुदेव) के बाण, महारुधिरबाण, नागबाण, आकाशबाण, तामस (अन्धकार कर देने वाला) बाण आदि है क्या ?
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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