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तृतीय प्रतिपत्ति: एकोरुक द्वीप का प्रकीर्णक वर्णन]
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तट्ठे सट्टे ! स णं पुप्फफलाणं एत्तो इट्ठतराए चेव जाव आस्साए णं पण्णत्ते ।
णं भंते! मणुया तमाहारमाहारित्ता कहिं वसहिं उवेंति ?
गोयमा ! रुक्खगेहालया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं भंते! रुक्खा किंसंठिया पण्णत्ता ?
गोयमा ! कूडागारसंठिया पेच्छाघरसंठिया, छत्तागारसंठिया झयसंठिया थूमसंठिया तोरणसंठिया गोपुरवेइयचोपालगसंठिया, अट्टालकसंठिया पासादसंठिया हम्मतलसंठिया गवक्खसंठिया वाल्लगपोइयसंठिया वलभिसंठिया अण्णे तत्थ बहवे वरभवणसयणासणविसिट्ठ संठाणसंठिया सुहसीयलच्छाया णं ते दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो !
[१११] (१५) हे भगवन् ! वे मनुष्य कैसा आहार करते हैं ?
हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य पृथ्वी, पुष्प और फलों का आहार करते हैं ।
हे भगवन् ! उस पृथ्वी का स्वाद कैसा है ?
गौतम ! जैसे गुड़, खांड, शक्कर, मिश्री, कमलकन्द, पर्पटमोदक, पुष्पविशेष से बनी शक्कर, कमलविशेष से बनी शक्कर, अकोशिता, विजया, महाविजया, आदर्शोपमा, अनोपमा (ये मधुर द्रव्य विशेष हैं) का स्वाद होता है वैसा उस मिट्टी का स्वाद है । अथवा ' चार बार परिणत एवं चतुःस्थान परिणत गाय दूध जो गुड़, शक्कर, मिश्री मिलाया हुआ, मंदाग्नि पर पकाया गया तथा शुभवर्ण, शुभगंध, शुभरस और शुभस्पर्श से युक्त हो, ऐसे गोक्षीर जैसा वह स्वाद होता है क्या ?
गौतम ! यह बात समर्थित नहीं है । उस पृथ्वी का स्वाद इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मनोज्ञतर होता है।
हे भगवन् ! वहाँ के पुष्पों और फलों का स्वाद कैसा होता है ?
गौतम ! जैसे चातुरंतचक्रवर्ती का भोजन जो कल्याणभोजन के नाम से प्रसिद्ध है, जो २ लाख गायों से निष्पन्न होता है, जो श्रेष्ठ वर्ण से गंध से, रस से और स्पर्श से युक्त है, आस्वादन के योग्य है, पुनः पुनः आस्वादन योग्य है, जो दीपनीय (जठराग्निवर्धक) है, वृंहणीय (धातुवृद्धिकारक ) है दर्पणीय (उत्साह आदि बढाने वाला) है, मदनीय ( मस्ती पैदा करने वाला) है और जो समस्त इन्द्रियों को और शरीर को आनन्ददायक होता है, क्या ऐसा उन पुष्पों और फलों का स्वाद है ?
गौतम ! यह बात ठीक नहीं हैं। उन पुष्प फलों का स्वाद उससे भी अधिक इष्टतर, कान्ततर, ,प्रियतर,
१. पौण्ड इक्षु चरने वाली चार गायों का धूध तीन गायों को पिलाया, तीन गायों का दूध दो गायों को पिलाना, उन दो गायों का दूध एक गाय को पिलाना, उसका जो दूध है वह चार बार परिणत और चतुःस्थानक परिणत कहलाता है।
२. पुण्ड्र जाति के इक्षु को चरने वाली एक लाख गायों का दूध पचास हजार गायों को पिलाया जाय, उन पचास हजार गायों का दूध पच्चीस हजार गायों को पिलाया जाय, इस तरह से आधी-आधी गायों को पिलाने के क्रम से वैसे दूध को पी हुई गायों में की अन्तिम गाय का जो दूध हो, उस दूध से बनाई हुई खीर जिसमें विविध मेवे आदि द्रव्य डाले गये हों वह चक्रवर्ती का कल्याणभोजन कहलाता है।