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________________ २९४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र पर बहुत से एकोरुकद्वीपवासी स्त्री-पुरुष उठते-बैठते हैं, लेटते है, आराम करते हैं और पूर्वकृत शुभकर्मों के फल को भोगते हुए विचरण करते हैं। द्रुमादि वर्णन [२] एगोरुयदीवेणंदीवेतत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उहालका कोहालका कयमाला णयमाला णट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालाणामदुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहि य पुप्फेहि य आछन्नपडिच्छण्णा सिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिटुंति। . एगोरुयदीवेणंदीवेरुक्खा बहवे हेरुयालवणाभेरुयालवणा मेरुयालवणा सेरुयालवणा सालवणा सरलवणा सत्तवण्णवणा पूयफलिवणा खजूरीवणा णालिएरिवणा कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति। एगोरुयदीवे णं तत्थ तत्थ बहवे तिलया, लवया, नग्गोहा जाव रायरुक्खाणंदिरुक्खा कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति। ____एगोरुयदीवेणं तत्थ बहुओ पउमलयाओ जाव सामलयाओ णिच्चं कुसुमियाओ एवं लयावण्णओ जहा उववाइए जाव पडिरूवाओ। ___एगोरुयदीवेणं तत्थ तत्थ बहवे सेरियागुम्मा जाव महाजाइगुम्मा, ते णं गुम्मा दसद्धवण्णं कुसुमं कुसुमंति विहुयग्गसाहाजेण वायविधूयग्गसाला एगोरुयदीवस्स बहुसमरमणिज्जभूमिभागं मुक्कपुष्फपुंजोवयारकलियं करेंति। एगोरुयदीवेणं तत्थ तत्थ बहुओ वणराईओ पण्णत्ताओ, ताओणं वणराईओ किण्हाओ किण्होभासाओजावरम्माओ महामेहणिकुरंबभूयाओजाव महती गंधद्धणिं मुयंतीओ पासाईयाओ। [१११] (२) हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक नामक द्वीप में स्थान-स्थान पर यहाँ-वहाँ बहुत से उद्दालक, कोद्दालक, कृतमाल, नतमाल, नृत्यमाल, शृंगमाल, शंखमाल, दंतमाल और शैलमाल नामक द्रुम (वृक्ष) कहे गये हैं। वे द्रुम कुश (दर्भ) और कांस से रहित मूल वाले हैं अर्थात् उनके आसपास दर्भ और कांस नहीं है। वे प्रशस्त मूल वाले, प्रशस्त कंद वाले यावत् प्रशन्त बीज वाले हैं और पत्रों तथा पुष्पों से आच्छन्न, प्रतिछन्न हैं, अर्थात् पत्रों और फूलों से लदे हुए हैं और शोभा से अतीव-अतीव शोभायमान हैं। उस एकोरुकद्वीप में जगह-जगह बहुत से वृक्ष हैं। साथ ही हेरुतालवन, ' भेरुतालवन, मेरुतालवन, सेरुतालवन, सालवन, सरलवन, सप्तपर्णवन, सुपारी के वन, खजूर के वन और नारियल के वन हैं। ये वृक्ष और वन कुश और कांस से रहित यावत् शोभा से अतीव अतीव शोभायमान हैं। १.. वृक्षों के समुदाय को वन कहते हैं। .
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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