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________________ तृतीय प्रतिपत्ति :एकोरुकमनुष्यों के एकोरुकद्वीप का वर्णन] [२९१ अतंरदीवगा अट्ठावीसइविहापण्णत्ता, तंजहा-एगुरुआ आभासिया वेसाणियाणांगोली हयकण्णगा० आयंसमुहा० आसमुहा० आसकण्णा० उक्कामुहा० घणदंता जाव सुद्धदंता। [१०८] हे भगवन् ! आन्तींपिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! आन्तीपिक अट्ठवीस प्रकार के हैं, जैसे कि एकोरुक, आभाषिक, वैषाणिक, नांगोलिक, हयकर्ण, आदर्शमुख आदि, अश्वमुख आदि, अश्वकर्ण आदि, उल्कामुख आदि, घनदन्त आदि यावत् शुद्धदंत। विवेचन-प्रस्तुत सूत्रों में गर्भज मनुष्यों के तीन प्रकार कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और आन्तर्दीपिकों का कथन करने के पश्चात् 'अस्त्यनानुपूर्व्यपि' अर्थात् अननुक्रम से भी कथन किया जाता है, इस न्याय से आन्तीपिकों के विषय में प्रश्न और उत्तर दिये गये हैं। लवणसमुद्र के अन्दर अन्तर्-अन्तर् पर द्वीप होने से ये अन्तद्वीप कहलाते हैं और इनमें रहने वाले मनुष्य 'तात्स्थ्यात्तद्व्यपदेशः' इस न्याय से आन्तीपिक कहे जाते हैं, जैसे पंजाब में रहने वाले पुरुष पंजाबी कहे जाते हैं। . आन्तीपिक मनुष्य अट्ठावीस प्रकार के हैं, यथा-१. एकोरुक, २. आभाषिक, ३. वैषाणिक, ४. नांगोलिक, ५. हयकर्ण, ६. गजकर्ण, ७. गोकर्ण, ८. शष्कुलीकर्ण, ९. आदर्शमुख, १०. मेण्ढमुख, ११. अयोमुख, १२. गोमुख, १३. अश्वमुख, १४. हस्तिमुख, १५. सिंहमुख, १६. व्याघ्रमुख, १७. अश्वकर्ण, १८. सिंहकर्ण, १९. अकर्ण, २०. कर्णप्रावरण, २१. उल्कामुख, २२. मेघमुख, २३. विद्युत्दंत, २४. विद्युजिह्व, २५. घनदन्त, २६. लष्टदन्त, २७. गूढदन्त और २८. शुद्धदन्त। इन द्वीपों में रहने वाले मनुष्य भी उसी नाम से जाने जाते हैं। इन आन्तीपिकों का आगे के सूत्र में विस्तार से वर्णन किया जा रहा है। एकोरुक मनुष्यों के एकोरुकद्वीप का वर्णन १०९. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगोरुयदीवे णाम दीवे पण्णत्ते ? - गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासधरपव्वयस्स उत्तरपुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओलवणसमुहं तिनि जोयणसयाइंओगाहित्ता एत्थणंदाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगोरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते तिनि जोयणसयाई आयाम-विक्खंभेणं णवएगूणपण्णजोयणसए किंचिविसेसेण परिक्खेवेणंएगाए पउमवरवेदियाए एगेणंच वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। साणं पउमवरवेदिया अट्ठजोयणाई उड्टुं उच्चत्तेणं पंचधणुसयाई विक्खंभेणं एगोरुदीवं समंता परिक्खेवेणं पण्णत्ता।तीसेणं पउमवरवेदियाए अयमेयारूवेवण्णावासेपण्णत्ते, तंजहावइरामया निम्मा एवं वेदियावण्णाओ जहा रायपसेणइए तहा भाणियव्यो। [१०९] हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप कहाँ रहा हुआ है ?
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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