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________________ भोगभूमियां हैं। यहाँ युगलिक धर्म है-चारित्र धर्म यहां नहीं है। मनुष्यों का वर्णन करने के पश्चात् चार प्रकार के देवों का कथन है-भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भवनपति और वानव्यन्तर देवों का आवास रत्नप्रभा पृथ्वी में-मध्यलोक में है। ज्योतिष्क देव भी मध्यलोक में हैं। वैमानिक देवों का निवास ऊर्ध्वलोक में है। भवनवासी देवों के ७ करोड़ ७२ लाख भवनावास रत्नप्रभा पृथ्वी में कहे गये हैं। उनमें असुरकुमार आदि दस प्रकार के भवनपति देव रहते है। असुरकुमारों के भवनों का वर्णन, असुरेन्द्र की ३ पर्षद्, उनमें देव-देवियों की संख्या, उनकी स्थिति, तीन पर्षदों की भिन्नता का कारण, उत्तर के असुरकुमारों का वर्णन तथा उनकी पर्षदाओं का वर्णन है। दक्षिण-उत्तर के नागकुमारेन्द्र और दक्षिण-उत्तर के धरणेन्द्र व उनकी तीन पर्षदों का भी वर्णन है। व्यन्तर देवों के भवन, इन्द्र और परिषदों का भी वर्णन है। ज्योतिष्क देवों के विमानों का संस्थान, और सूर्य चन्द्र देवों की तीन-तीन परिषदों का उल्लेख है। इसके पश्चात द्वीप-समुद्रों का वर्णन किया गया है। जम्बूद्वीप-जम्बूद्वीप के वृत्ताकार की उपमाएँ, उसके संस्थान की उपमाएँ, आयाम-विष्कंभ, परिधि, जगती की ऊँचाई, उसके मूल मध्य और ऊपर का विष्कंभ, उसका संस्थान, जगती की जाली की ऊँचाई, विष्कंभ, पद्मवरवेदिका की ऊंचाई एवं विष्कंभ, उसकी जालिकाएँ, घोड़े आदि के चित्र, वनलता आदि लताएँ अक्षत, स्वस्तिक, विविध प्रकार के कमल, शाश्वत या अशाश्वत आदि का वर्णन है। जम्बूद्वीप के वनखंड का चक्रवाल, विष्कंभ, विविध वापिकाएं, उनके सोपान, तोरण, समीपवर्ती पर्वत, लतागृह, मंडप, शिलापट्ट और उन पर देव देवियों की क्रीडाओं आदि का वर्णन है। जम्बूद्वीप के विजयद्वार का स्थान, उसकी ऊँचाई, विष्कंभ तथा कपाट की रचना का विस्तृत वर्णन है। विजयदेव सामानिक देव, अग्रमहिषियों, तीन पर्षदों, आत्मरक्षक देवों आदि के भद्रासनों का वर्णन है। विजयद्वार के ऊपरी भाग का, उसके नाम के हेतु का तथा उसकी शाश्वतता का उल्लेख किया गया है। जम्बूद्वीप की विजया राजधानी का स्थान, उसका आयाम-विष्कंभ, परिधि, प्राकार की उँचाई, प्राकार के और ऊपरी भाग का विष्कंभ, उसका संस्थान, कपिशीर्षक का आयाम-विष्कंभ, उसके द्वारों की ऊँचाई और विष्कंभ, चार वनखण्ड, उनका आयाम-विष्कंभ, दिव्य प्रासाद, उनमें चार महर्द्धिक देव, परिधि, पद्मवरवेदिका वनखंड सोपान व तोरण प्रासादावतंसक, मणिपीठिका, सिंहासन, आठ मंगल, समीपवर्ती प्रासादों की ऊंचाई, आयाम-विष्कंभ, अन्य पार्श्ववर्ती प्रासादों की ऊंचाई, आयाम, विष्कंभ आदि का वर्णन है। विजयदेव की सुधर्मा सभा, ऊंचाई, आयाम-विष्कंभ, उसके तीन द्वारों की ऊंचाई व विष्कंभ, मुखमंडपों का आयाम विष्कंभ और ऊंचाई, प्रेक्षागृह-मंडपों का आयाम-विष्कंभ व ऊंचाई, मणिपीठिकाओं, चैत्य वृक्षों महेन्द्र ध्वजाओं और सिद्धायतन के आयाम-विष्कंभ तथा ऊंचाई का वर्णन किया गया है। तदनन्तर उपपात सभा, विजयदेव की उत्पत्ति, पर्याप्ति, मानसिक संकल्प आदि का वर्णन है। विजयदेव और उसके सामानिक देवों की स्थिति बताई गई है। जम्बूद्वीप के विजय, वैजयन्त, जयंत और अपराजित द्वारों का विस्तृत वर्णन किया गया है। जम्बूद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर, जम्बूद्वीप से लवणसमुद्र का और लवणसमुद्र से जम्बूद्वीप से स्पर्श का तथा परस्पर में इनमें जीवों की उत्पत्ति का कथन है। ___ जम्बूद्वीप में उत्तरकुरु का स्थान, संस्थान और विष्कंभ, जीवा और वक्षस्कार पर्वत का स्पर्श, धनुपृष्ठ की परिधि उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्यों की ऊंचाई, पसलियां, आहारेच्छा, काल, स्थिति, अपत्यपालन-काल, आदि का [३१]
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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