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तृतीय प्रतिपत्ति: बाहल्य की अपेक्षा तुल्यतादि ]
बाहल्य में विशेषाधिक है और तीसरी के अपेक्षा दूसरी विशेषाधिक है तथा चौथी के अपेक्षा तीसरी विशेषाधिक है, इसी तरह सातवीं की अपेक्षा छठी पृथ्वी मोटाईं में विशेषाधिक है । सब पृथ्वियों की मोटाई इस प्रकार है—
प्रथम पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है । दूसरी पृथ्वी की मोटाई एक लाख बत्तीस हजार योजन की है । तीसरी पृथ्वी की एक लाख अट्ठाईस हजार योजन की है । चौथी पृथ्वी की एक लाख बीस हजार योजन की है। पांचवीं पृथ्वी की एक लाख अठारह हजार योजन की है। छठी पृथ्वी की मोटाई एक लाख सोलह हजार योजन की है । सातवीं पृथ्वी की मोटाई एक लाख आठ हजार योजन की है।
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अतएव बाहल्य की अपेक्षा से पूर्व-पूर्व की पृथ्वी अपनी पिछली पृथ्वी की अपेक्षा विशेषाधिक ही है, तुल्य या संख्येयगुण नहीं ।
विस्तार की अपेक्षा पिछली - पिछली पृथ्वी की अपेक्षा पूर्व-पूर्व की पृथ्वी विशेषहीन है, तुल्य या संख्येयगुणहीन नहीं । रत्नप्रभा में प्रदेशादि की वृद्धि से प्रवर्धमान होने पर उतने ही क्षेत्र में शर्कराप्रभादि में भी वृद्धि होती है, अतएव विशेषहीनता ही घटित होती है ।
इस प्रकार भगवान् के द्वारा प्रश्नों के उत्तर दिये जाने पर श्री गौतमस्वामी भगवान् के प्रति अपनी अटूट और अनुपम श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहते हैं कि भगवन् ! आपने जो कुछ फरमाया, वह पूर्णतया वैसा ही है, सत्य है, यथार्थ है । ऐसा कह कर गौतमस्वामी भगवान् को वन्दन - नमस्कार करके संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं ।
इस प्रकार जीवाजीवाभिगम की तीसरी प्रतिपत्ति का प्रथम नरक - उद्देशक समाप्त ।