________________
२२० ]
[जीवाजीवाभिगमसूत्र
दोच्चाणंभंते ! पुढवी तच्चं पुढविंपणिहाय बाहल्लेणं किंतुल्ला? एवं चेव भाणियव्वं । एवं तच्चा चउत्थी पंचमी छट्ठी। छट्ठी णं भंते ! पुढवी सत्तमं पुढविं पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला, विसेसाहिया, संखेज्जगुणा ?
एवं चेव भाणियव्वं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! नेरइयउद्देसओ पढमो।
[८०] हे भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी नरकपृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में क्या तुल्य है, विशेषाधिक है या संख्येयगुण है ? और विस्तार की अपेक्षा क्या तुल्य है, विशेषहीन है या संख्येय गुणहीन है ?
गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी नरकपृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में तुल्य नहीं है, विशेषाधिक है, संख्यातगुणहीन है। विस्तार की अपेक्षा तुल्य नहीं है, विशेषहीन है, संख्यातगुणहीन नहीं है।
भगवन् ! दूसरी नरकपृथ्वी तीसरी नरकपृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में क्या तुल्य है इत्यादि उसी प्रकार कहना चाहिए। इसी प्रकार तीसरी, चौथी, पांचवी और छठी नरक पृथ्वी के विषय में समझना चाहिए।
भगवन् ! छठी नरकपृथ्वी सातवीं नरकपृथ्वी की अपेक्षा बाहल्य में क्या तुल्य है, विशेषधिक है या संख्येयगुण है ? उसी प्रकार कहना चाहिए।
हे भगवन् ! (जैसा आपने कहा) वह वैसा ही है, वह वैसा ही है। इस प्रकार प्रथम नैरयिक उद्देशक पूर्ण हुआ।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र मे नरकपृथ्वियों के बाहुल्य और विस्तार को लेकर आपेक्षिक तुल्यता, विशेषाधिकता या विशेषहीनता अथवा संख्यातगुणविशेषाधिकता या संख्यातगुणहीनता को लेकर प्रश्न किये गये हैं। यहाँ यह शंका हो सकती है कि पूर्वसूत्रों में नरकपृथ्वियों का बाहल्य बता दिया गया है, उससे अपने आप यह बात ज्ञात हो जाती है तो फिर इन प्रश्नों की क्या उपयोगिता है ? यह शंका यथार्थ है परन्तु समाधान यह है-यह प्रश्न स्वयं जानते हुए भी दूसरे मंदमतियों की अज्ञाननिवृत्ति हेतु और उन्हें समझाने हेतु किया गया है। प्रश्न दो प्रकार के हैं-एक ज्ञ-प्रश्न और दूसरा अज्ञ-प्रश्न। स्वयं जानते हुए भी जो दूसरों को समझाने की दृष्टि से प्रश्न किया जाय वह ज्ञ-प्रश्न और जो अपनी जिज्ञसा के लिए किया जाता है वह अज्ञ-प्रश्न है। ऊपर जो प्रश्न किया गया है वह ज्ञ-प्रश्न है जो मंदमतियों के लिए किया गया है। यह कैसे कहा जा सकता है कि यह ज्ञ-प्रश्न है ? क्योंकि इसके आगे जो प्रश्न किया गया है वह स्व-अवबोध के लिए है।
सूत्र में प्रश्न किया गया है कि दूसरी नरकपृथ्वी की अपेक्षा यह रत्नप्रभापृथ्वी मोटाई में तुल्य है, विशेषाधिक है या संख्येयगुण है ? उत्तर में कहा गया है तुल्य नहीं है, विशेषाधिक है किन्तु संख्येयगुण नहीं हैं। क्योंकि रत्नप्रभा की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है और दूसरी शर्करापृथ्वी की मोटाई एक लाख बत्तीस हजार योजन की है। दोनों में अड़तालीस हजार योजन का अन्तर है। इतना ही अन्तर होने के कारण विशेषाधिकता ही घटती है तुल्यता और संख्येयगुणता घटित नहीं होती। सब पृथ्वियों की मोटाई यहाँ उद्धृत कर देते हैं ताकि स्वयमेव यह प्रतीत हो जावेगा कि दूसरी पृथ्वी की अपेक्षा प्रथम पृथ्वी