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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : पृथ्वियों का विभागवार अन्तर] [२१७ से अक्षय है और अक्षय होने से अव्यय है और अव्यय होने से स्वप्रमाण में अवस्थित है। अतएव सदा रहने के कारण नित्य है। अथवा ध्रुवादि शब्दों को एकार्थक भी समझा जा सकता है। शाश्वतता पर विशेष भार देने हेतु विविध एकार्थक शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार सातों पृथ्वियों की शाश्वतता जाननी चाहिए । पृथ्वियों का विभागवार अन्तर ७९. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ हेट्ठिल्ले चरिमंते एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते? गोयमा ! असिउत्तरं जोयणसयसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ खरस्स कंडस्स हेडिल्ले चरिमंते एस णं केवइयं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलस जोयणसहस्साई अबाधाए अंतरे पण्णत्ते। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ रयणकंडस्स हेडिल्ले चरिमंते एस णं केवइयं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कं जोयणसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? इमीसे णंभंते ! रयण पु० उवरिल्लाओ चरिमंताओ वइरस्स कंडस्स उवरिल्ले चरिमंते एस णं केवइयं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कं जोयणसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते? इमीसे णं रयण पु० उवरिल्लाओ चरिमंताओ वइरस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते एसणं भंते ! केवइयं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! दो जोयणसहस्साइं इमीसे णं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते। एवंजाव रिट्ठस्स उवरिल्ले पन्नरस जोयणसहस्साइं, हेट्ठिल्ले चरमंते सोलस जोयणसहस्साई। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ पंकबहुलस्स कंडस्स उवरिल्ले चरिमंते एस णं अबाहाए केवइयं अंतरे पण्णत्ते? गोयमा ! सोलस जोयणसहस्साइं आबाधाए अंतरे पण्णत्ते। हेट्ठिल्ले चरिमंते एक्कं जोयणसयसहस्सं आवबहुलस्स उवरिं एक्कं जोयणसयसहस्सं हेट्ठिल्ले चरिमंते असीउत्तरं जोयणसयसहस्सं। घणोदधि उवरिल्ले असिउत्तर जोयणसयसहस्सं,हेट्ठिल्ले चरिमंते दो जोयणसयसहस्साइं। इमीसे णं भंते ! रयण पु० घणवातस्स उवरिल्ले चरिमंते दो जोयणसयसहस्साइं। हेट्ठिल्ले चरिमंते असंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं।। इमीसे णं भंते ! रयण पु० तणुवायस्स उवरिल्ले चरमंते असंखेज्जाइंजोयणसयसहस्साई अबाधाए अंतरे, हेट्ठिल्ले वि असंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई। एवं ओवासंतरे वि।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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