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________________ २१४ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र उत्पन्न हुए हैं। यहाँ सब जीवों से तात्पर्य संव्यवहार राशि वाले जीव ही समझना चाहिए, अव्यवहार राशि के जीव नहीं। संसार अनादिकालीन होने से अलग-अलग समय में सब जीव रत्नप्रभा आदि में उत्पन्न हुए हैं। परन्तु सब जीव एक साथ रत्नप्रभादि में उत्पन्न नहीं हुए। यदि सब जीव एक साथ रत्नपभादि में उत्पन्न हो जाएं तो देव, तिथंच, मनुष्यादि का अभाव प्राप्त हो जावेगा। ऐसा कभी नहीं होता। जगत् का स्वभाव ही ऐसा है। तथाविध जगत्-स्वभाव से चारों गतियां शाश्वत हैं । अतः एक साथ सब जीव रत्नप्रभादि में उत्पन्न नहीं हो सकते। - पहला प्रश्न उत्पाद को लेकर है। निर्गम को लेकर दूसरा प्रश्न किया है कि हे भगवन् ! सब जीवों ने पूर्व में कालक्रम से रत्नप्रभादि पृथ्वियों को छोड़ा है या सब जीवों ने पूर्व में एक साथ रत्नप्रभादि को छोड़ा भगवान् ने कहा-गौतम ! सब जीवों ने भूतकाल में कालक्रम से, अलग-अलग समय में रत्नप्रभादि भूमियों को छोड़ा है, परन्तु सब जीवों ने एक साथ उन्हें नहीं छोड़ा। सब जीव एक साथ रत्नप्रभादि का परित्याग कर ही नहीं सकते। क्योंकि तथाविध निमित्त ही नहीं है। यदि एक साथ सब जीवों द्वारा रत्नप्रभादि का त्याग किया जाना माना जाय तो रत्नप्रभादि में नारकों का अभाव हो जायगा। ऐसा कभी नहीं होता । __जीवों को लेकर हुए प्रश्नोत्तर के पश्चात् पुद्गल सम्बन्धी प्रश्न हैं। क्या सबं पुद्गल भूतकाल में रत्नप्रभादि के रूप में कालक्रम से परिणत हुए हैं या एक साथ सब पुद्गल रत्नप्रभादि के रूप में परिणत हुए. हैं ? भगवान् ने कहा-सब पुद्गल कालक्रम से अलग-अलग समय में रत्नप्रभादि के रूप में परिणत हुए हैं, क्योंकि संसार अनादिकाल से है और उसमें ऐसा परिणमन हो सकता है। परन्तु सब पुद्गल एक साथ रत्नप्रभादि के रूप में परिणत नहीं हो सकते। सब पुद्गलों के तद्रूप में परिणत होने पर रत्नप्रभादि को छोड़कर अन्यत्र सब जगह पुद्गलों का अभाव हो जावेगा। ऐसा तथाविध जगत्-स्वभाव के कारण कभी नहीं होता। इसी प्रकार सब पुद्गलों ने कालक्रम से रत्नप्रभादि रूप परिणमन का परित्याग किया है। क्योंकि संसार अनादि है, किन्तु सब पुद्गलों ने एक साथ रत्नप्रभादि रूप परिणमन का त्याग नहीं किया है। क्योंकि यदि वैसा माना जाय तो रत्नप्रभादि के स्वरूप का अभाव हो जावेगा। ऐसा हो नहीं सकता। क्योंकि तथाविध जगत्-स्वभाव से रत्नप्रभादि शाश्वत हैं। शाश्वत या अशाश्वत ७८. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी किं सासया असासया ? गोयमा ! सिय सासया, सिय असासया। से केणढेणं भंते ! एवं बुच्चइ-सिय सासया, सिय असासया ? गोयमा ! दबट्टयाए सासया, वण्णज्जवेहिं, गंधपज्जवेहिं, रसपज्जवेहिं, फासपज्जवेहिं असासया; से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-तं चेव जाव सिय असासया। एवं जाव अधेसत्तमा।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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