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________________ १९६ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र पृथ्वयां नाम पंकप्रभा होता है अर्थात् नाम में उसके अनुरूप गुण होना आवश्यक नहीं है, जबकि गोत्र गुणप्रधान होता है। सात पृथ्वयों के नाम और गोत्र इस प्रकार हैं गोत्र बाहल्य (योजनों में) प्रथम पृथ्वी घम्मा रत्नप्रभा एक लाख अस्सी हजार द्वितीय पृथ्वी वंशा शर्कराप्रभा एक लाख बत्तीस हजार तृतीय पृथ्वी शैला बालुकाप्रभा एक लाख अट्ठावीस हजार चतुर्थ पृथ्वी अंजना एक लाख बीस हजार पंचम पृथ्वी रिष्टा धूमप्रभा एक लाख अठारह हजार षष्ठ पृथ्वी मघा तमप्रभा एक लाख सोलह हजार सप्तम पृथ्वी माघवती तमस्तमप्रभा एक लाख आठ हजार नाम की अपेक्षा गोत्र की प्रधानता है, अतएव रत्नप्रभादि गोत्र का उल्लेख करके प्रश्न किये गये हैं तथा उसी रूप में उत्तर दिये गये हैं। नरकभूमियों के गोत्र अर्थानुसार हैं, अतएव उनके अर्थ को स्पष्ट करते हुए पूर्वाचार्यों ने कहा है कि रत्नों की जहाँ बहुलता हो वह रत्नप्रभा है। यहाँ 'प्रभा' का अर्थ बाहुल्य है। इसी प्रकार शेष पृथ्वियों के विषय में भी समझना चाहिए। जहाँ शर्करा (कंकर) की प्रधानता हो वह शर्कराप्रभा। जहाँ बालू की प्रधानता हो वह बालुकाप्रभा। जहाँ कीचड़ की प्रधानता हो पंकप्रभा। धुंए की तरह जहाँ प्रभा हो वह धूमप्रभा है। २ जहाँ अन्धकार का बाहुल्य हो वह तमःप्रभा और जहाँ बहुत घने अन्धकार की बहुलता हो वह तमस्तमःप्रभा है। यहाँ किन्हीं किन्हीं प्रतियों में इन पृथ्वियों के नाम और गोत्र को बताने वाली दो संग्रहणी गाथाएँ दी गई हैं; जो नीचे टिप्पण में दी गई हैं। ३ इसके पश्चात् प्रत्येक नरकपृथ्वी की मोटाई को लेकर प्रश्नोत्तर हैं । नरकपृथ्वियों का बाहुल्य (मोटाई) ऊपर कोष्ठक में बता दिया गया है। इस विषयक संग्रहणी गाथा इस प्रकार है असीयं बत्तीसं अट्ठावीसं तहेव वीसं च। अट्ठारस सोलसगं अठुत्तरमेव हिट्ठिमिया॥ इस गाथा का अर्थ मूलार्थ में दे दिया है। स्पष्टता के लिए पुनः यहाँ दे रहे हैं। रत्नप्रभानरकभूमि -वृत्ति १. रत्नानां प्रभा-बाहुल्यं यत्र सा रत्नप्रभा रत्नबहुलेति भावः। २. धूमस्येव प्रभा यस्याः सा धूमप्रभा। ३. घम्मा वंसा सेला अंजण रिट्ठा मघा या माधवती। सत्तण्डं पुढवीणं एए नामा उ नायव्वा ॥१॥ रयणा सक्कर वालुय पंका धूमा तमा य तमतमा। सत्तण्हं पुढवीणं एए गोत्ता मुणेयव्वा ॥२॥
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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