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________________ ततीय प्रतिपत्ति: चार प्रकार के संसारसमापनक जीव] [१९५ गोतम ! दूसरी पृथ्वी का नाम वंसा है और गोत्र शर्कराप्रभा है। इस प्रकार सब पृथ्वियों के सम्बन्ध में प्रश्न करने चाहिए। उनके नाम इस प्रकार हैं-तीसरी पृथ्वी का नाम शैला, चौथी पृथ्वी का नाम अंजना, पांचवी पृथ्वी का नाम रिष्टा है, छठी पृथ्वी का नाम मघा और सातवीं पृथ्वी का नाम माघवती है। इस प्रकार तीसरी पृथ्वी का गोत्र बालुकाप्रभा, चौथी का पंकप्रभा, पांचवी का धूमप्रभा, छठी का तमःप्रभा और सातवीं का गोत्र तमस्तमःप्रभा है। ६८. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी केवइया वाहल्लेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! इमाणं रयणप्पभापुढवी असिउत्तरं जोयणसयसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ता, एवं एतेणं अभिलावेणं इमा गाहा अणुगंतव्वा असीयं बत्तीसं अट्ठावीसं तहेव बीसं य। अट्ठारस सोलसगं अठुत्तरमेव हिट्ठिमिया॥१॥ [६८] हे भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी कितनी मोटी कही गई है ? गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है। इसी प्रकार शेष पृथ्वियों की मोटाई इस गाथा से जानना चाहिए 'प्रथम पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है। दूसरी की मोटाई एक लाख बत्तीस हजार योजन की है। तीसरी की मोटाई एल लाख अट्ठाईस हजार योजन की है। चौथी की मोटाई एक लाख बीस हजार योजन की है। पांचवी की मोटाई एक लाख अठारह हजार योजन की है। छठी की मोटाई एक लाख सोलह हजार योजन की है। सातवीं की मोटाई एक लाख आठ हजार योजन की है। विवेचन-(सं ६५ से ६६ तक) पूर्व प्रतिपादित इस प्रकार की प्रतिपत्तियों में से जो आचार्य संसारसमापनक जीवों के चार प्रकार कहते हैं वे चार गतियों के जीवों को लेकर ऐसा प्रतिपादिन करते हैं; यथा-१ नरकगति के नैरयिक जीव, २ तिर्यंचगति के जीव, ३ मनुष्यगति के जीव और ४ देवगति के जीव। ऐसा कहे जाने पर सहज जिज्ञासा होती है कि नैरयिक आदि जीव कहाँ रहते हैं, उनके निवास रूप नरकभूमियों के नाम, गोत्र विस्तार आदि क्या और कितने हैं ? नरकभूमियों और नारकों के विषय में विविध जानकारी इन सूत्रों में और आगे के सूत्रों में दी गई है। सर्वप्रथम नारक जीवों के प्रकार को लेकर प्रश्न किया गया है। उसके उत्तर में कहा गया है कि नारक जीव सात प्रकार के हैं। सात नरकभूमियों की अपेक्षा से नारक जीवों के सात प्रकार बताये हैं, जैसे कि प्रथमपृथ्वीनैरयिक से लगा कर सप्तमपृथ्वीनैरयिक तक। इसके पश्चात् नरकपृथ्वियों के नाम और गोत्र को लेकर प्रश्न और उत्तर हैं। नाम और गोत्र में अन्तर यह है कि नाम अनादिकालसिद्ध होता है और अन्वर्थरहित
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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