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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
प्रदेशराशि होती है, उसके बराबर घनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणियों में जितने आकाशप्रदेश हैं, उतने प्रमाण वाले हैं।
प्रत्येक नरकपृथ्वी के पूर्व, उत्तर, पश्चिम दिशा के नैरयिक सर्वस्तोक हैं, उनसे दक्षिणदिशा के नैरयिक असंख्येयगुण हैं। पूर्व पूर्व की पृथ्वियों की दक्षिणदिशा के नैरयिक नपुंसकों की अपेक्षा पश्चानपूर्वी से आगे आगे की पृथ्वियों में उत्तर और पश्चिम दिशा में रहे हुए नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण अधिक हैं। प्रज्ञापनासूत्र में ऐसा ही कहा है ।
(३) तिर्यक्योनिक नपुंसक विषयक अल्पबहुत्व
खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक् नपुंसक सबसे थोड़े, क्योंकि वे प्रतर के असंख्येयभागवर्ती असंख्येय श्रेणीगत आकाश प्रदेशराशि प्रमाण हैं।
उनसे स्थलचर तिर्यक्योनिक नपुंसक संख्येयगुण हैं, क्योंकि वे बृहत्तर प्रतर के असंख्येयभागवर्ती असंख्येय श्रेणिगत आकाश-प्रदेशराशिप्रमाण हैं।
उनसे जलचर नपुंसक संख्येयगुण हैं क्योंकि वे बृहत्तर प्रतर के असंख्येयभागवर्ती असंख्येय श्रेणिगत प्रदेशराशिप्रमाण हैं।
उनसे चतुरिन्द्रिय ति. यो. नपुंसक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे असंख्येय योजन कोटीकोटीप्रमाण आकाशप्रदेश राशिप्रमाण घनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणियों में जितने आकाशप्रदेश हैं, उतने प्रमाण वाले हैं।
उनसे त्रीन्द्रिय ति. यो. नपुंसक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रभूततर श्रेणिगत आकाशप्रदेशराशिप्रमाण
हैं।
उनसे द्वीन्द्रिय ति. यो. नपुंसक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रभूततम श्रेणिगत आकाशप्रदेशराशिप्रमाण
हैं
उनसे तेजस्कायिक एकेन्द्रिय ति. यो. नपुंसक असंख्यातगुण हैं, क्योंकि वे सूक्ष्म और बादर मिलकर असंख्येय लोकाकाश प्रदेशप्रमाण हैं।
उनसे अप्कायिक एके. ति. यो. नपुंसक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रभूततर असंख्येय लोकाकाशप्रदेशप्रमाण हैं।
उनसे वायुकायिक एके . ति. यो. नपुंसक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रभूततम असंख्येय लोकाकाशप्रदेशप्रमाण हैं।
१. दिसाणुवायेण सव्वत्थोवा अहेसत्तमपुढविनेरइया पुरथिम पच्चत्थिम उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा ...........इत्यादि।
-प्रज्ञापनासूत्र पद ३।