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________________ द्वितीय प्रतिपत्ति: नपुंसकों का अल्पबहुत्व] उनसे त्रीन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक विशेषाधिक, उनसे तेजस्काय एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक असंख्यातगुण, उनसे पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक विशेषाधिक, उनसे अप्काय एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक विशेषाधिक, उनसे वायुकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक विशेषाधिक, उनसे वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक अनन्तगुण हैं । [१७७ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पांच प्रकार से अल्पबहुत्व बताया गया है। प्रथम प्रकार में नैरयिक, तिर्यक्योनिक और मनुष्य नपुंसकों का सामान्य रूप से अल्पबहुत्व है । दूसरे में नैरयिकों के सात भेदों का अल्पबहुत्व है। तीसरे प्रकार में तिर्यक्योनिक नपुंसकों के भेदों की अपेक्षा से अल्पबुहत्व है। चौथे प्रकार में मनुष्यों के भेदों की अपेक्षा से अल्पबहुत्व है और पांचवें प्रकार में सामान्य और विशेष दोनों प्रकार का मिश्रित अल्पबहुत्व है । (१) प्रथम प्रकार के अल्पबहुत्व में पूछा गया है कि नैरयिक नपुंसक, तिर्यक्योनिक नपुंसक और मनुष्य नपुंसकों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है। इसके उत्तर में कहा गया है सबसे थोड़े मनुष्य नपुंसक हैं, क्योंकि वे श्रेणी के असंख्येयभागवर्ती प्रदेशों की राशि - प्रमाण हैं । उनसे नैरयिक नपुंसक असंख्येयगुण हैं, क्योंकि वे अंगुलमात्र क्षेत्र की प्रदेशराशि के प्रथम वर्गमूल द्वितीय वर्गमूल से गुणित करने पर जो प्रदेशराशि होती है, उसके बराबर घनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणियों में जितने आकाश प्रदेश हैं, उनके बराबर हैं। नैरयिक नपुंसकों से तिर्यक्योनिक नपुंसक अनन्तगुण हैं, क्योंकि निगोद के जीव अनन्त हैं । (२) नैरयिक नपुंसक भेद सम्बन्धी अल्पबहुत्व सबसे थोड़े सातवीं पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक हैं, क्योंकि इनका प्रमाण आभ्यन्तर श्रेणी के असंख्येयभागवर्ती आकाशप्रदेश राशितुल्य है । उनसे छठी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्येयगुण हैं, उनसे पांचवी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्येयगुण हैं, उनसे चौथी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्येयगुण हैं, उनसे तीसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्येयगुण हैं, उनसे दूसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्येयगुण हैं, क्योंकि ये सभी पूर्व-पूर्व नैरयिकों के परिमाण की हेतुभूत श्रेणी के असंख्येयभाग की अपेक्षा असंख्येयगुण असंख्येयगुण श्रेणी के भागवर्ती नभः- प्रदेशराशि प्रमाण हैं । दूसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्येयगुण लिनी
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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