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द्वितीय प्रतिपत्ति: अन्तर]
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अन्तर
[३] नपुंसकस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं सातिरेगं। णेरइय नपुंसकस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तरुकालो। रयणप्पभापुढवी नेरइय णपुंसकस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तरुकाओ। एवं सव्वेसिं जाव अधेसत्तमा। तिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स जहन्नेणंअंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोपमसयपुहुत्तं सातिरेगं।
एगिंदिय तिरिक्खजोणियणपुंसकस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणंदो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमब्भहियाई।
पुढवि-आउ-तेउ-वाऊणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। वणस्सइकाइयाणंजहन्नेणंअंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेजंकालंजाव असंखेज्जा लोया। सेसाणं बेइंदियादीणं जाव खहयराणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो।
मणुस्सणपुंसकस्सखेत्तं पडुच्च जहन्नेणंअंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो।धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एगं समयं उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवड्डपोग्गलपरियट्टे देसूणं।
एवं कम्मभूमगस्स वि भरहेरवय-पुव्वविदेह-अवरविदेहकस्स वि। अकम्मभूमक मणुस्स णपुंसकस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होइ ?
गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो।संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो एवं जाव अंतरदीवग त्ति।
[५९] (३) भगवन् ! नपुंसक का कितने काल का अन्तर होता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से सागरोपमशतपृथक्त्व से कुछ अधिक। भगवन् ! नैरयिक नपुंसक का अन्तर कितने काल का है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल। रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिक नपुंसक का जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी नैरयिक नपुंसक तक कहना चाहिए। तिर्यक्योनि नपुंसक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपमशतपृथक्त्व। एकेन्द्रिय तिर्यक्योनि नपुंसक का जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातवर्ष अधिक दो हजार सागरोपम। पृथ्वी-अप्-तेजस्काय और वायुकाय का जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का अन्तर