SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय प्रतिपत्ति: पुरुष का पुरुषरूप में निरन्तर रहने का काल] [१५१ ___ मनुष्यपुरुषों का निरन्तर तद्रूप में रहने का काल पूर्व में कही गई मनुष्यस्त्रियों की वक्तव्यता के अनुसार है। वह निम्नानुसार है __सामान्य से मनुष्य-पुरुष का तद्रूप में निरन्तर रहने का कालमान जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम। इसमें सात भव तो महाविदेह में पूर्वकोटि आयु के और आठवां भव देवकुरु आदि में तीन पल्योपम की आयु का जानना चाहिए। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि। आठ वर्ष की आयु के बाद चारित्र-प्रतिपत्ति होती है, अतः आठ वर्ष कम होने से देशोनता कही है। विशेष विवक्षा में कर्मभूमि का मनुष्य-पुरुष कर्मभूमि क्षेत्र की अपेक्षा से जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक निरन्तर तद्रूप में रह सकता है। यह सात बार पूर्वकोटि आयु वालों में उत्पन्न होकर आठवीं बार भरत ऐरावत में एकान्त सुषमा आरे में तीन पल्योपम की स्थिति सहित उत्पन्न होने वाले की अपेक्षा से है। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य से एक समय (सर्वविरति परिणाम एक समय का भी संभव है) और उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि तक। समग्र चारित्रकाल भी इतना है। ' भरत-ऐरावत कर्मभूमिक मनुष्य पुरुष भी भरत-ऐरावत क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम तक तद्रूप में निरन्तर रह सकता है। यह पूर्वकोटि आयु वाले किसी विदेहपुरुष को भरतादिक्षेत्र में संहरण कर लाने पर भरतक्षेत्रीय व्यपदेश होने से भवायु के क्षय होने पर एकान्त सुषमाकाल के प्रारंभ में उत्पन्न होने वाले मनुष्यपुरुष की अपेक्षा से समझना चाहिए। धर्माचरण की अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि तक संचिट्ठणा समझनी चाहिए। पूर्वविदेह-पश्चिमविदेह कर्मभूमिक मनुष्यपुरुष उसी रूप में निरन्तर क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व तक रह सकता है। वह बार बार वहीं सात बार उत्पत्ति की अपेक्षा से समझना चाहिए। इसके बाद अवश्य गति और योनि का परिवर्तन होता ही है। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि। अकर्मभूमिक मनुष्य पुरुष तद्भाव को छोड़े बिना निरन्तर जन्म की अपेक्षा से पल्योपमासंख्येयभाग न्यून एक पल्योपम तक और उत्कर्ष से तीन पल्योपम तक रह सकता है। संहरण की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त (यह अन्तर्मुहूर्त आयु शेष रहने पर अकर्मभूमि में संहरण की अपेक्षा से है।) है और उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम तक। यह देशोन पूर्वकोटि आयु वाले पुरुष का उत्तरकुरु आदि में संहरण हो और वह वहीं मर कर वहीं उत्पन्न हो, इस अपेक्षा से है। देशोनता गर्भकाल की अपेक्षा से है। गर्भस्थित के संहरण का प्रतिषेध है। हैमवत-हैरण्यवत अकर्मभूमिक मनुष्य पुरुष जन्म की अपेक्षा जघन्य से पल्योपमासंख्येयभाग न्यून
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy