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________________ द्वितीय प्रतिपत्ति: अन्तरद्वार] [१३७ होते। अन्तरद्वार ४९. इत्थी णं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होइ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं, वणस्सइकालो, एवं सव्वासिं तिरिक्खत्थीणं। मणुस्सित्थीए खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो; धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अणंत कालं जाव अवड्डपोग्गलपरियटें देसूणं, एवं जाव पुव्वविदेहअवरविदेहियाओ। अकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहन्नं दसवाससहस्साइं अंतोमुत्तमब्भहियाइं; उक्कोसेणं वणस्सइकालो। संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एवं जाव अंतरदीवियाओ। . देवित्थियाणं सव्वासिं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। [४९] भगवन् ! स्त्री के पुनः स्त्री होने में कितने काल का अन्तर होता है ? (स्त्री, स्त्रीत्व का त्याग करने के बाद पुनः कितने समय बाद स्त्री होती है ?) गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल अर्थात् वनस्पतिकाल।ऐसा सब तिर्यंचस्त्रियों के विषय में कहना चाहिए। मनुष्यस्त्रियों का अन्तर क्षेत्र की अपेक्षा जघन्यं से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल । धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल यावत् देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्तन । इसी प्रकार यावत् पूर्वविदेह और पश्चिमविदेह की मनुष्यस्त्रियों की वक्तव्यता कहनी चाहिए। भंते ! अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों का अन्तर कितना कहा गया है ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल। संहरण की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल । इस प्रकार यावत् अन्तर्वीपों की स्त्रियों का अन्तर कहना चाहिए। सभी देवस्त्रियों का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में अन्तर बताया गया है। अन्तर का अर्थ है काल का व्यवधान । स्त्री स्त्रीपर्याय का परित्याग करके पुनः जितने समय के बाद स्त्रीपर्याय को प्राप्त करती है वह कालव्यवधान स्त्री का अन्तर कहलाता है। सामान्य विवक्षा में स्त्रीवेद का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से अनन्तकाल अर्थात् वनस्पतिकाल है। इसकी भावना इस प्रकार है
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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