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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रह सकती
जलचरी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व तक रह सकती हैं। चतुष्पदीथलचरी के सम्बन्ध में औधिक तिर्यचस्त्री की तरह जानना। उरपरिसर्पस्त्री और भुजपरिसर्पस्त्री के संबंध में जलचरी की तरह कहना चाहिए।
खेचरी खेचरस्त्री के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल तक रह सकती है।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में तिर्यंचस्त्री का तिर्यंचस्त्री के रूप में लगातार रहने का कालप्रमाण बताया गया है। जघन्य से अन्तर्मुहूर्त काल तक और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक तिर्यंचस्त्री तिर्यचस्त्री रूप में रह सकती है। इसकी भावना इस प्रकार है
किसी तिर्यंचस्त्री की आयु अन्तर्मुहूर्त मात्र हो और वह मर कर वेदान्तर को प्राप्त कर-ले अथवा मनुष्यादि विलक्षण भाव को प्राप्त कर ले तो उसकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त का जघन्य अवस्थानकाल संगत होता है। उत्कृष्ट अवस्थानकाल की भावना इस प्रकार है
मनुष्य और तिर्यंच उसी रूप में उत्कर्ष से आठ भव लगातार कर सकते हैं, अधिक नहीं।' इनमें से सात भव तो संख्यात वर्ष की आयु वाले होते हैं और आठवां भव असंख्यात वर्ष की आयु वाला ही होता है। पर्याप्त मनुष्य या पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च निरन्तर यथासंख्य सात पर्याप्त मनुष्य भव या सात पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच के भवों का अनुभव करके आठवें भव में पुनः पर्याप्त मनुष्य या पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो तो नियम से असंख्येय वर्षायु वाला ही होता है, संख्येय वर्षायु वाला नहीं। असंख्येय वर्षायुवाला मर कर नियम से देवलोक में उत्पन्न होता है, अतः लगातार नौवां भव मनुष्य या संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यन्च का नहीं होता। अतएव जब पीछे के सातों भव उत्कर्ष से पूर्वकोटि आयुष्य के हों और आठवां भव देवकुरु आदि में उत्कर्ष से तीन पल्योपम का हो, इस अपेक्षा से तिर्यस्त्री का अवस्थानकाल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम का होता है।
विशेष चिन्ता में जलचरी स्त्री जलचरी स्त्री के रूप में लगातार जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व तक रह सकती है। पूर्वकोटि आयु की जलचरी के सात भव करके अवश्य ही जलचरीभव का परिवर्तन होता है।
चतुष्पद स्थलचरी की वक्तव्यता औधिक तिर्यंचस्त्री की तरह है। अर्थात् जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है।
१. 'नरतिरियाणं सतट्ठभवा' इति वचनात्