________________
१२० ]
[जीवाजीवाभिगमसूत्र
वैमानिक देवों में केवल पहले सौधर्म देवलोक में और दूसरे ईशान देवलोक में ही स्त्रियां हैं। आगे के देवलोकों में स्त्रियां नहीं हैं। अतएव वैमानिक देवियों के दो भेद बताये हैं-सौधर्मकल्प वैमानिक देवस्त्री और ईशानकल्प वैमानिक देवस्त्री। इस प्रकार स्त्रियों के तीन भेद का वर्णन किया गया है । स्त्रियों की भवस्थिति का प्रतिपादन
४६. इत्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! एगेणं आएसेणं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाइं। एक्केणं आएसेणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं णव पलिओवमाइं। एक्केणं आएसेणं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाइं। एक्केणं आएसेणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पन्नासं पलिओवमाइं। [४६] हे भगवन् ! स्त्रियों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? गौतम ! एक अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की स्थिति है। दूसरी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट नौ पल्योपम की स्थिति कही गई है। तीसरी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात पल्योपम की स्थिति कही गई है। चौथी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पचास पल्योपम की स्थिति कही गई है।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में सामान्य रूप से स्त्रियों की भवस्थिति का प्रतिपादन किया गया है। समुच्चय रूप से स्त्रियों की स्थिति यहाँ चार अपेक्षाओं से बताई गई है। सूत्र में आया हुआ 'आदेश' शब्द प्रकार का वाचक है। ' प्रकार शब्द अपेक्षा का भी वाचक है। ये चार आदेश (प्रकार) इस प्रकार हैं
(१) एक अपेक्षा से स्त्रियों की भवस्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है। यह तिर्यंच और मनुष्य स्त्री की अपेक्षा से जानना चाहिए। अन्यत्र इतनी जघन्य स्थिति नहीं होती। उत्कृष्ट स्थिति पचपन पल्योपम की है। यह ईशानकल्प की अपरिगृहीता देवी की अपेक्षा से समझना चाहिए।
(२) दूसरी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त (पूर्ववत्) और उत्कृष्ट नौ पल्योपम। यह ईशानकल्प की परिगृहीता देवी की अपेक्षा से समझना चाहिए।
(३) तीसरी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त (पूर्ववत्) और उत्कृष्ट सात पल्योपम। यह सौधर्मकल्प की परिगृहीता देवी की अपेक्षा से है।
(४) चौथी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त (पूर्ववत्) और उत्कृष्ट पचास पल्योपम। यह सौधर्म कल्प की अपरिगृहीता देवी की अपेक्षा से है । २
१. 'आदेसो त्ति पगारो' इति वचनात्। २. उक्तं च संग्रहण्याम्
सपरिग्गहेयराणं सोहम्मीसाण पलियसाहियं । उक्कोस सत्त पन्ना नव पणपन्ना य देवीणं ॥