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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, योग, उपयोग द्वार पृथ्वीकायिकों के समान जानने चाहिए। आहारद्वार-द्वीन्द्रियों की तरह है।
उपपात-नैरयिक, देव, तेजस्काय, वायुकाय और असंख्यात वर्षायु वालों को छोड़कर शेष जीवस्थानों से आकर उत्पन्न होते हैं।
स्थिति-जघन्य और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त प्रमाण। जघन्य अन्तर्मुहूर्त से उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कुछ अधिक जानना चाहिए।
ये समवहत भी मरते हैं और असमवहत भी।
उद्वर्तना-नैरयिक, देव और असंख्यात वर्षायु वालों को छोड़कर शेष जीवस्थानों में मरकर उत्पन्न होते हैं। इसलिए गति-आगतिद्वार में दो गति वाले और दो आगति वाले (तिर्यक् और मनुष्य) हैं। ये प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं। हे आयुष्मन् श्रमण ! यह सम्मूर्छिम मनुष्यों का वर्णन हुआ।
गर्भज मनुष्यों का वर्णन-गर्भ से उत्पन्न होने वाले मनुष्य तीन प्रकार के हैं-१. कर्मभूमिक, २. अकर्मभूमिक और ३. अन्तीपज।
कर्मभूमिक-कर्म-प्रधान भूमियों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य कर्मभूमिक हैं। कृषि वाणिज्यादि अथवा मोक्षानुष्ठानरूप कर्म जहाँ प्रधान हों वह कर्मभूमि है। पांच भरत, पांच ऐरवत और ५ महाविदेहये १५ कर्मभूमियां हैं। इन्हीं भूमियों में जीवन-निर्वाह हेतु विविध व्यापार, व्यवसाय, कृषि, कला आदि होते हैं। इन्ही क्षेत्रों में मोक्ष के लिए अनुष्ठान, प्रयत्न आदि हो सकते हैं। अतएव ये कर्मभूमियां हैं। इनमें ही सब सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक व्यवस्थाएँ होती हैं। इनमें उत्पन्न मनुष्य कर्मभूमिक मनुष्य हैं। __अकर्मभूमिक-जहाँ असि (शस्त्रादि), मषि (साहित्य-व्यापार कलाएँ) और कृषि (खेती) आदि कर्म न हों तथा जहाँ मोक्षानुष्ठान हेतु धर्माराधना आदि प्रयत्न न हों ऐसी भोग-प्रधान भूमि अकर्मभूमियाँ हैं। पाँच हैमवत, पाँच हैरण्यवत, पाँच हरिवर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु, ये तीस अकर्मभूमियां हैं। इन ३० अकर्मभूमियों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य अकर्मभूमिक हैं। यहाँ के मनुष्यों के भोगोपभोग के साधनों की पूर्ति कल्पवृक्षों से होती है, इसके लिए उन्हें कोई कर्म नहीं करना पड़ता।
पाँच हैमवत और पांच हैरण्यवत क्षेत्र में मनुष्य एक कोस ऊँचे, एक पल्योपम की आयु वाले और वज्रऋषभनाराच संहनन वाले तथा समचतुरस्रसंस्थान वाले होते हैं। इनकी पीठ की पसलियाँ ६४ होती हैं। ये एक दिन के अन्तर से भोजन करते हैं और ७९ दिन तक सन्तान की पालना करते हैं।
पांच हरिवर्ष और पांच रम्यकवर्ष क्षेत्रों में मनुष्यों की आयु दो पल्योपम की, शरीर की ऊँचाई दो कोस की होती है। ये वज्रऋषभनाराच संहनन वाले और समचतुरस्त्रसंस्थान वाले होते हैं। दो दिन के अन्तर से आहार की अभिलाषा होती है। इनके १२८ पसलियाँ होती हैं। ६४ दिन तक संतान की पालना करते है।
पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुररु क्षेत्र के मनुष्यों की आयु तीन पल्योपम की, ऊँचाई तीन कोस