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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
और दो गतियों से आने वाले हैं। ये प्रत्येकशरीरी और असंख्यात लोकाकाशप्रदेश प्रमाण हैं। यह सूक्ष्म वायुकायिक का कथन हुआ।
बादर वायुकायिकों का स्वरूप क्या है ?
बादर वायुकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथा-पूर्वी वायु, पश्चिमी वायु और इसी प्रकार के अन्य वायुकाय। वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त ।
भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ?
गौतम! चार शरीर कहे गये हैं-औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण। उनके शरीर ध्वजा के आकार के हैं। उनके चार समुद्घात हैं-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणांतिकसमुद्घात और वैक्रियसमुद्घात। उनका आहार व्याघात न हो तो छहों दिशाओं के पुद्गलों का होता है और व्याघात होने पर कभी तीन दिशा, कभी चार दिशा और कभी पांच दिशाओं के पुद्गलों के ग्रहण का होता है। वे जीव देवगति, मनुष्यगति
और नरकगति में उत्पन्न नहीं होते । उनकी स्थिति जपन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से तीन हजार वर्ष की है। शेष पूर्ववत् । हे आयुष्मन् श्रमण! एक गति वाले, दो आगति वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात कहे गये है।
यह बादर वायुकाय और वायुकाय का कथन हुआ।
विवेचन-वायु ही जिनका शरीर है वे जीव वायुकायिक कहे जाते हैं। ये दो प्रकार के हैं-सूक्ष्म और बादर। सूक्ष्म वायुकायिकों का वर्णन पूर्वोक्त सूक्ष्म तेजस्कायिकों की तरह जानना चाहिए। अन्तर यह है कि वायुकायिकों के शरीर का संस्थान पताका (ध्वजा) के आकार का है।
बादर वायुकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं। प्रज्ञापनासूत्र में कहे गये प्रकारों का यहाँ उल्लेख करना चाहिए। वहाँ इनके प्रकार इस तरह बताये गये हैं
पूर्वीवात-पूर्व दिशा से आने वाली हवा।। पश्चिमीवात-पश्चिम दिशा से आने वाली हवा। दक्षिणवात-दक्षिण दिशा से आने वाली हवा। उदीचीनवात-उत्तर दिशा से आने वाली हवा। ऊर्ध्ववात-ऊर्ध्व दिशा में बहने वाली हवा। अधोवात-नीची दिशा में बहने वाली हवा। तिर्यग्वात-तिरछी दिशा में बहने वाली हवा। विदिशावात-विदिशाओं से आने वाली हवा। वातोदभ्रम-अनियत दिशाओं से बहने वाली हवा। वातोत्कलिका-समुद्र के समान तेज बहने वाली तूफानी हवा। वातमंडलिका–वातौली, चक्करदार हवा।