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प्रथम प्रतिपत्ति: त्रसों का प्रतिपादन]
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सूइयों के समुदाय के आकार का जानना चाहिए।
ये जीव एक गति (तिर्यंचगति) में ही जाते हैं और दो गतियों से (तिर्यंच और मनुष्यों) से आते हैं। ये जीव प्रत्येकशरीर वाले हैं और असंख्यात हैं। यह सूक्ष्म तेजस्काय का कथन हुआ। २५. से किं तं बादरतेउक्काइया ? बादरतेउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहाइंगाले जाले मुम्मुरे जाव सूरकंतमणिनिस्सिए; जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहापज्जत्ता य अपज्जत्ता य। तेसिं णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता?
गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा. ओरालिए, तेयए, कम्मए। सेसं तं चेव, सरीरगा सूइकलावसंठिया, तिनि लेस्सा, ठिती जहन्नेणंअंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि राइंदियाई,तिरियमणुस्सेहितो उववाओ,सेसंतंचेव एगगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेजा पण्णत्ता, से तं तेउक्काइया।
[२५] बादर तेजस्कायिकों का स्वरूप क्या है ?
बादर तेजस्कायिक अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथा-कोयले की अग्नि, ज्वाला की अग्नि, मुर्मुर (भूभुर) की अग्नि यावत् सूर्यकान्त मणि से निकली हुई अग्नि और भी अन्य इसी प्रकार की अग्नि। ये बादर तेजस्कायिक जीव संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त।
भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ?
गौतम! उनके तीन शरीर कहे गये हैं-१. औदारिक, २. तैजस और ३. कार्मण।शेष बादर पृथ्वीकाय की तरह समझना चाहिए। अन्तर यह है कि उनके शरीर सूइयों के समुदाय के आकार के हैं, उनमें तीन लेश्याएँ हैं, जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन रात-दिन की है। तिर्यंच और मनुष्यों से वे आते हैं और केवल एक तिर्यंचगति में ही जाते हैं । वे प्रत्येकशरीर वाले हैं और असंख्यात कहे गये हैं। यह तेजस्काय का वर्णन हुआ।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में त्रसजीव तीन प्रकार के कहे गये हैं-तेजस्कायिक, वायुकायिक और उदार त्रस। पूर्व में कहा जा चुका है कि त्रस जीव दो प्रकार के बताये गये हैं-गतित्रस और लब्धित्रस। यहाँ जो तेजस्कायिकों और वायुकायिकों को त्रस कहा गया हैं सो गतित्रस की अपेक्षा से समझना चाहिए। तेजस्काय
और वायुकाय में अनभिसंधि पूर्वक गति पाई जाती है, अभिसंधिपूर्वक गति नहीं। जो अभिसंधिपूर्वक गति कर सकते हैं वे तो स्पष्ट रूप से उदार त्रस कहे गये हैं, जैसे-द्वीन्द्रियादि त्रस जीव। ये ही लब्धित्रस कहे