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________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र पर्याप्त है वहाँ कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त अपर्याप्त पैदा होते हैं। प्रत्येक वनस्पति की अपेक्षा संख्यात, असंख्यात और साधारण वनस्पति की अपेक्षा अनन्त अपर्याप्त समझने चाहिए । उन बादर वनस्पतिकायिकों के विषय में २३ द्वारों की विचारणा में सब कथन बादर पृथ्वीकायिकों के समान जानना चाहिए । जो अन्तर है वह इस प्रकार है ६० ] इन बादर वनस्पतिकायिक जीवों का संस्थान नाना रूप है-अनियत है। इसकी उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन से अधिक की बताई है। वह बाह्य द्वीपों में वल्ली आदि की अपेक्षा तथा समुद्र एवं गोतीर्थों में पद्मनाल की अपेक्षा से समझना चाहिए। इससे अधिक पद्मों की अवगाहना को पृथ्वीकाय का परिणाम समझना चाहिए। ऐसी वृद्ध आचार्यों की धारणा है । स्थितिद्वार में उत्कृष्ट दस हजार वर्ष कहने चाहिए । गति - आगति द्वार के बाद 'अपरित्ता अणंता' पाठ है। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येकशरीरी वनस्पति जीव असंख्यात हैं और साधारणशरीरी वनस्पति जीव अनन्त हैं। इस प्रकार हे आयुष्मन् श्रमण ! यह बादर वनस्पति का कथन हुआ और इसके साथ ही स्थावर जीवों का कथन पूर्ण हुआ । सों का प्रतिपादन २२. से किं तसा ? तसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा तेक्काड्या, वाउक्काइया, ओराला तसा पाणा । [२२] त्रसों का स्वरूप क्या है ? त्रस तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथातेजस्काय, वायुकाय और उदारत्रस । २३. से किं तं तेडक्काइया ? उक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहासुहुमतेउक्काइया य बादरतेक्काइया य । [२३] तेजस्काय क्या हैं ? तेजस्काय दो प्रकार के कहे गये हैं, जैसेसूक्ष्मतेजस्काय और बादरतेजस्काय । २४. से किं तं सुहुमतेडक्काइया ? सुहुमते उक्काइया जहा - सुहुमपुढविक्काइया नवरं सरीरगा सूइकलावसंठिया, एगगइआ, दुआगइआ, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता, सेसं तं चेव, से तं सुहुमतेडक्काइया । [२४] सूक्ष्म तेजस्काय क्या हैं ? सूक्ष्म तेजस्काय सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की तरह समझना । विशेषता यह है कि इनके शरीर का संस्थान
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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