SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर के जीवन-प्रसंगों का अभिनय, नाट्याभिनय का उपसंहार दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था । १०५— तदनन्तर अर्थात् पूर्वोक्त प्रकार की नाट्यविधियों का प्रदर्शन करने के अनन्तर वे देवकुमार और देवकुमारियां एक स्थान पर एकत्रित हुए यावत् दिव्य देवरमत में प्रवृत्त हो गये। भगवान् महावीर के जीवन-प्रसंगों का अभिनय ५७ १०६— तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स पुव्वभवचरियणिबद्धं च, चवणचरियणिबद्धं च संहरणचरियनिबद्धं च, जम्मणचरियनिबद्धं च, अभिसेअचरियनिबद्धं च, बालभावचरियनिबद्धं च, जोव्वण- चरियनिबद्धं च कामभोगचरियनिबद्धं च, निक्खमण - चरियनिबद्धं च तवचरणचरियनिबद्धं च णाणुप्पायचरियनिबद्धं च तित्थपवत्तणचरिय-परिनिव्वाणचरियनिबद्धं च चरिमचरियनिबद्धं च णामं दिव्वं णट्टविहिं " उवसेंति । १०६— तत्पश्चात् उन सब देवकुमारों एवं देवकुमारियों ने श्रमण भगवान् महावीर के पूर्व भवों सम्बन्धी चरित्र से निबद्ध एवं वर्तमान जीवन सम्बन्धी, च्यवनचरित्रनिबद्ध, गर्भसंहरणचरित्रनिबद्ध, जन्मचरित्रनिबद्ध, जन्माभिषेक, बालक्रीड़ानिबद्ध, यौवनचरित्रनिबद्ध (गृहस्थावस्था से सम्बन्धित) अभिनिष्क्रमण - चरित्रनिबद्ध (दीक्षामहोत्सव से सम्बन्धित), तपश्चरण-चरित्रनिबद्ध (साधनाकालीन दृश्य) ज्ञानोत्पादचरित्र - निबद्ध ( कैवल्य प्राप्त होने की परिस्थिति का चित्रण), तीर्थ - प्रवर्तनचरित्र से सम्बन्धित, परिनिर्वाण चरित्रनिबद्ध (मोक्ष प्राप्त होने के समय का दृश्य) तथा चरमचरित्रनिबद्ध (निर्वाण प्राप्त हो जाने के पश्चात् देवों आदि द्वारा किये जाने वाले महोत्सव से सम्बन्धित) नामक अंतिम दिव्य नाट्य-अभिनय का प्रदर्शन किया। विवेचन — देवों द्वारा श्रमण भगवान् महावीर एवं गौतम आदि श्रमण निर्ग्रन्थों के समक्ष प्रदर्शित बत्तीस प्रकार के नाट्य-अभिनयों में से अंतिम (बत्तीसवां अभिनय) श्रमण भगवान् महावीर की जीवन- घटनाओं के मुख्य-मुख्य प्रसंगों से सम्बंन्धित है। यह सब देखकर तत्कालीन अभिनयकला की परम प्रकर्षता का दृश्य उपस्थित हो जाता है और उस-उस अभिनय की उपयोगिता भी परिज्ञात हो जाती है। नाट्याभिनय का उपसंहार १०७ – तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य चउव्विहं वाइत्तं वाएंति तं जहा— ततं विततं-घणं-झुसिरं । १०७— तत्पश्चात् (दिव्य नाट्यविधियों को प्रदर्शित करने के पश्चात्) उन सभी देवकुमारों और देवकुमारियों ढोल-नगाड़े आदितत, वीणा आदि वितत, झांझ आदि घन और शंख, बांसुरी आदि शुषिर इन चतुर्विध वादित्रोंबाजों को बजाया। १०८— तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य चउव्विहं गेयं गायंति तं जहा— उक्खित्तं - पायंतं-मंदायं - रोइयावसाणं च । १०८– वादित्रों को बजाने के अनन्तर उन सब देवकुमारों और देवकुमारियों ने उत्क्षिप्त, पादान्त (पादवृद्ध),
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy