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________________ नाट्याभिनयों का प्रदर्शन ९८- सागरपविभत्तिं च नागरप० च सागर-नागर प० च णाम उवदंसेंति । ९८-- इसके बाद सागर प्रविभक्ति, नगर-प्रविभक्ति अर्थात् समुद्र और नगर सम्बन्धी रचना से युक्त सागरनागर-प्रविभक्ति नामक अपूर्व नाट्यविधि का अभिनय दिखया। __९९- णंदाप० च चंपाप० नन्दा-चंपाप० च णामं उवदंसेंति । ९९– तत्पश्चात् नन्दाप्रविभक्ति–नन्दा पुष्करिणी की सुरचना से युक्त, चम्पा प्रविभक्ति–चम्पक वृक्ष की रचना से युक्त नन्दा-चम्पाप्रविभक्ति नामक दिव्यनाट्य का अभिनय दिखाया। १००- मच्छंडाप० च मयरंडाप० च जारप० च मारप० च मच्छंडा-मयरंडा-जारा-माराप० च णामं उवदंसेंति । ___ १००– तत्पश्चात् मत्स्याण्डक, मकराण्डक, जार, मार की आकृतियों की सुरचना से युक्त मत्स्याण्डमकराण्ड-जार-मार प्रविभक्ति नामक दिव्य नाट्यविधि दिखलाई। १०१ - 'क' त्ति ककारप० च. 'ख' त्ति खकारप० च. 'ग' त्ति गकारप० च. 'घ' त्ति घकारप० च, 'ङ त्ति ङकारप० च, ककार-खकार-गकार-घकार-ङकारप० च णामं उवदंसेंति, एवं चकारवग्गो पि टकारवग्गो वि तकारवग्गो वि पकारवग्गो वि । १०१– तदनन्तर उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने क्रमशः 'क' अक्षर की आकृति-रचना करके ककारप्रविभक्ति, 'ख' की आकार-रचना करके खकारप्रविभक्ति, 'ग' की आकृति-रचना द्वारा गकारप्रविभक्ति, 'घ' अक्षर के आकार की रचना द्वारा घप्रविभक्ति और 'ङ' के आकार की रचना द्वारा ङकारप्रविभक्ति, इस प्रकार ककारखकार-गकार-घकार-ङकारप्रविभक्ति नाम की दिव्य नाट्यविधियों का प्रदर्शन किया। इसी तरह से चकार-छकार-जकार-झकार-त्रकार की रचना करके चकारवर्गप्रविभक्ति नामक दिव्य नाट्यविधि का अभिनय किया। ___ चकार वर्ग के पश्चात् क्रमशः ट-ठ-ड-ढ-ण के आकार की सुरचना द्वारा टकारवर्गप्रविभक्ति नामक नाट्यविधि का प्रदर्शन किया। ___टकारवर्ग के अनन्तर क्रम प्राप्त तकार-थकार-दकार-धकार-नकार की रचना करके तकारवर्गप्रविभक्ति नामक नाट्यविधि को दिखलाया। तकारवर्ग के नाटयाभिनय के अनन्तर प.फ.ब. भ. म के आकार की रचना करके पकारवर्गप्रविभक्ति नाम की दिव्य नाट्यविधि का अभिनय दिखाया। विवेचन— यहां लिपि सम्बन्धी अभिनयों के उल्लेख में ककार से पकार पर्यन्त पांच वर्गों के पच्चीस अक्षरों के अभिनयों का ही संकेत किया है, उसमें स्वरों तथा य, र, ल, व, ष, स, ह, क्ष, त्र, ज्ञ अक्षरों के अभिनयों का उल्लेख नहीं है। इसका कोई ऐतिहासिक कारण है या अन्य, यह विचारणीय है। अथवा सम्भव है कि देवों की लिपि में ककार से लेकर पकार तक के अक्षर होते हों जिससे उन्हीं का अभिनय प्रदर्शित किया है। इन लिपि सम्बन्धी अभिनयों में 'क' वगैरह की जो मूल आकृतियां ब्राह्मी लिपि में बताई हैं, आकृतियों के सदृश अभिनय यहां समझना चाहिए। जैसे कि ब्राह्मी लिपि में क की + ऐसी आकृति है, अतएव इस आकृति के
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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