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राजप्रश्नीयसूत्र मणियों का वर्ण
३१- तत्थ णं जे ते किण्हा मणी तेसिं णं मणीणं इमे एतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए जीमूतए इ वा, खंजणे इ वा, अंजणे इ वा, कज्जले इ वा, मसी इ वा, मसीगुलिया इ वा, गवले इ वा, गवलगुलिया इ वा, भमरे इ वा, भमरावलिया इ वा, भमरपतंगसारे ति वा, जंबूफले ति वा, अद्दारिढे इ वा, परपुढे इ वा, गए इ वा, गयकलभे इ वा, किण्हसप्पे इ वा, किण्हकेसरे इ वा, आगासथिग्गले इ वा, किण्हासोए इ वा, किण्हकणवीरे इ वा, किण्हबंधुजीवे इ वा, एयारूवे सिया ?
३१- उन मणियों में की कृष्ण वर्ण वाली मणियां क्या सचमुच में सघन मेघ घटाओं, अंजन-सुरमा, खंजन (गाड़ी के पहिये की कीच) काजल, काली स्याही, काली स्याही की गोली, भैंसे के सींग की गोली, भ्रमर, भ्रमर पंक्ति, भ्रमर पंख, जामुन, कच्चे अरीठे के बीज अथवा कौए के बच्चे, कोयल, हाथी, हाथी के बच्चे, कृष्ण सर्प, कृष्ण बकुल शरद ऋतु के मेघरहित आकाश, कृष्ण अशोक वृक्ष, कृष्ण कनेर, कृष्ण बंधुजीवक (दोपहर में फूलने वाला वृक्ष-विशेष) जैसी काली थीं?
३२- णो इणढे समटे, ओवम्म समणाउसो ! ते ण किण्हा मणी इत्तो इट्ठतराए चेव कंततराए चेव, मणुण्णतराए चेव, मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णत्ता । .
३२- हे आयुष्मन् श्रमणो! यह अर्थ समर्थ नहीं है—ऐसा नहीं है। ये सभी तो उपमायें हैं। वे काली मणियां तो इन सभी उपमाओं से भी अधिक इष्टतर कांततर (कांति-प्रभाववाली) मनोज्ञतर और अतीव मनोहर कृष्ण वर्ण वाली थीं।
३३– तत्थ णं जे ते नीला मणी तेसि णं मणीणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए भिंगे इ वा, भिंगपत्ते इ वा, सुए इ वा, सुयपिच्छे इ वा, चासे इ वा, चासपिच्छे इ वा, णीली इ वा, णीलीभेदे इ वा, णीलीगुलिया इ वा, सामाए इ वा, उच्चन्तगे इ वा, वणराती इवा, हलधरवसणे इ वा, मोरग्गीवा इ वा, पारेवयग्गीवा इवा, अयसिकुसुमे इ वा, बाणकुसुमे इ वा, अंजणकेसियाकुसुमे इ वा, नीलुप्पले इ वा, नीलासोगे इ वा, णीलकणवीरे इ वा, णीलबंधुजीवे इ वा, भवे एयारूवे सिया ?
३३– उनमें की नील वर्ण की मणियां क्या भंगकीट, भुंग के पंख, शुक (तोता), शुकपंख, चाष पक्षी (चातक), चाष पंख, नील, नील के अंदर का भाग, नील गुटिका, सांवा (धान्य), उच्चन्तक (दांतों को नीला रंगने का चूर्ण), वनराजि, बलदेव के पहनने के वस्त्र, मोर की गर्दन, कबूतर की गर्दन, अलसी के फूल, बाणपुष्प, अंजनकेशी के फूल, नीलकमल, नीले अशोक, नीले कनेर और नीले बंधुजीवक जैसी नीली थीं?
३४- णो इणढे समढे, ते णं णीला मणी एत्तो इट्ठतराए चेव जाव' वण्णेणं पण्णत्ता । ३४- यह अर्थ समर्थ नहीं है—यह ऐसा नहीं है। वे नीली मणियां तो इन उपमेय पदार्थों से भी अधिक
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देखें सूत्र संख्या ३२