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________________ आभियोगिक देवों द्वारा विमान रचना २७ प्रतिरूप थे। २८- तेसिं च णं तोरणाणं उप्पिं बहवे किण्हचामरज्झया जाव (नीलचामरज्झया, लोहियचामरज्झया, हालिद्दचामरज्झया) सुक्किल्लचामरज्झया अच्छा सण्हा रुप्पपट्टा वरदण्डा जलयामलगन्धिया सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा विउव्वति । २८– उन तोरणों के ऊपर स्वच्छ, निर्मल, सलौनी, रजतमय पट्ट से शोभित वज्रनिर्मित डंडियों वाली, कमलों जैसी सुरभि गंध से सुगंधित, रमणीय, आह्लादकारी, दर्शनीय मनोहर रातीव मनोहर बहुत सी कृष्ण चामर ध्वजाओं यावत् (नील चामर ध्वजाओं, लाल चामर ध्वजाओं, पीली चामर ध्वजाओं और) श्वेत चामर ध्वजाओं की रचना की। २९- तेसिं णं तोरणाणं उप्पिं बहवे छत्तातिछत्ते, पडागाइपडागे, घंटाजुगले, उप्पलहत्थए, कुमुद-णलिण-सुभग-सोगंधिय-पोंडरीय-महापोंडरीय-सतपत्त-सहस्सपत्तहत्थए, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे विउव्वति । २९– उन तोरणों के शिरोभाग में निर्मल यावत् अत्यन्त शोभनीय रत्नों से बने हुए अनेक छत्रातिछत्रों (एक छत्र के ऊपर दूसरा छत्र) पताकातिपताकाओं घंटायुगल, उत्पल (श्वेतकमल) कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुंडरीक, महापुंडरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र कमलों के झुमकों को लटकाया। ३०- तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं विउव्वति । से जहाणामए आलिंगपुक्खरे ति वा, मुइंगपुक्खरे इ वा, परिपुण्णे सरतले इ वा, करतले इ वा, चंदमंडले इ वा, सूरमण्डले इ वा, आयंसमंडले इ वा, उरब्भचम्मे इ वा, वसहचम्मे इ वा, बराहचम्मे इ वा, वग्घचम्मे इ वा, छगलचम्मे इ वा, दीवियचम्मे इ वा, अणेगसंकुकीलगसहस्सवितते, णाणाविहपंचवन्नेहिं मणीहिं उवसोभिते आवड-पच्चावड-सेढि-पसेढिसोत्थिय-सोवत्थिय-पूसमाणव-वद्धमाणग-मच्छंडग-मगरंडग-जार-मार-फुल्लावलि-पउमपत्त-सागरतरंग-वसंतलय-पउमलय-भत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं सप्पभेहिं समरीइएहिं सउज्जोएहिं णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं उवसोभिए तं जहा—किण्हेहिं णीलेहिं लोहिएहिं हालिद्देहिं सुक्किल्लेहिं । ___३०— सोपानों आदि की रचना करने के अनन्तर उस आभियोगिक देव ने उस दिव्ययानविमान के अन्दर एकदम समतल भूमिभाग—स्थान की विक्रिया की। वह भूभाग आलिंगपुष्कर (मुरज का ऊपरी भाग) मृदंग पुष्कर, पूर्ण रूप से भरे हुए सरोवर के ऊपरी भाग, करतल (हथेली), चन्द्रमंडल, सूर्यमंडल, दर्पण मंडल अथवा शंकु जैसे बड़े-बड़े खीलों को ठोक और खींचकर चारों ओर से सम किये गये भेड़, बैल, सुअर, सिंह, व्याघ्र, बकरी और भेड़िये के चमड़े के समान अत्यन्त रमणीय एवं सम था। वह सम भूमिभाग अनेक प्रकार के आवर्त, प्रत्यावर्त्त, श्रेणि, प्रश्रेणि, स्वस्तिक, पुष्यमाणव, शराबसंपुट, मत्स्यांड, मकराण्ड जार, मार आदि शुभलक्षणों और कृष्ण, नील, लाल, पीले और श्वेत इन पांच वर्णों की मणियों से उपशोभित था और उनमें कितनी ही मणियों में पुष्पलताओं, कमलपत्रों, समुद्रतरंगों, वसंतलताओं, पद्मलताओं आदि के चित्राम बने हुए थे तथा वे सभी मणियां निर्मल, चमकदार किरणों वाली उद्योत-शीतल प्रकाश वाली थीं।
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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