SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूर्याभदेव की घोषणा की प्रतिक्रिया एक योजन प्रमाण गोल सुस्वर घंटा को तीन बार बजाया । तब उस मेघमालासदृश गम्भीर और मधुर ध्वनि करने वाली योजन प्रमाण गोल सुस्वर घंटा के तीन बार बजाये जाने पर उसकी ध्वनि से सूर्याभ विमान के प्रासादविमान आदि से लेकर कोने-कोने तक के एकान्तशांत स्थान लाखों प्रतिध्वनियों से गूंज उठे। २३ विवेचन— अधिक से अधिक बारह योजन की दूरी से आया हुआ शब्द ही श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा ग्रहण किया जा सकता है। मगर सूर्याभ विमान तो एक लाख योजन विस्तार वाला है। ऐसी स्थिति में घण्टा का शब्द सर्वत्र कैसे सुनाई दिया ? इस प्रश्न का समाधान मूलपाठ के अनुसार ही यह है कि घंटा के ताड़न करने पर उत्पन्न हुए शब्द - पुद्गलों के इधर-उधर टकराने से तथा दैवी प्रभाव से, लाखों प्रतिध्वनियां उत्पन्न हो गईं। उनसे समग्र सूर्याभ विमान व्याप्त हो गया और विमानवासी सब देवों देवियों ने शब्द श्रवण कर लिया । २१ – तए णं तेसिं सूरियाभविमाणवासिणं बहूणं वेमाणियाणं देवाण य दवीण य एगंतरइपसत्तनिच्चप्पमत्तविसयसुहमुच्छियाणं सूसरघंटारवविउलबोलतुरियचवलपडिबोहणे कम घोसणकोउहल-दिन्नकन्नएगग्गचित्त उवउत्तमाणसाणं से पायत्ताणीयाहिवई देवे तंसि घंटारवंसि णिसंतपसंतंसि महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणे उग्घोसेमाणे एवं वदासी— हंद ! सुणंतु भवंतो सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सूरियाभविमाणवइणो वयणं हियसुहत्थं— आणवेइ णं भो ! सूरियाभे देवे, गच्छइ णं भो ! सूरियाभे देवे जंबुद्दीवं दीवं भारहं वासं आमलकप्पं नगरिं अंबसालवणं चेइयं समणं भगवं महावीरं अभिवंदए; तं तुब्भेऽवि णं देवाणुप्पिया ! सव्विड्डीए अकालपरिहीणा चेव सूरियाभस्स देवस्स अंतियं पाउब्वह । २१ – तब उस सुस्वर घंटा की गम्भीर प्रतिध्वनि से एकान्त रूप से अर्थात् सदा सर्वदा रति क्रिया (कामभोगों) में आसक्त, नित्य प्रमत्त एवं विषयसुख में मूच्छित सूर्याभविमानवासी देवों और देवियों ने घंटानाद से शीघ्रातिशीघ्र प्रतिबोधित- सावधान - जाग्रत होकर घोषणा के विषय में उत्पन्न कौतूहल की शांति के लिए कान और मन को केन्द्रित किया तथा घंटारव के शांत-प्रशांत ( बिल्कुल शांत) हो जाने पर उस पदात्यानीकाधिपति देव ने जोरजोर से उच्च शब्दों में उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहा आप सभी सूर्याभविमानवासी वैमानिक देव और देवियां सूर्याभ विमानाधिपति की इस हितकारी सुखप्रद घोषणा को हर्षपूर्वक सुनिये हे देवानुप्रियो ! सूर्याभदेव ने आप सबको आज्ञा दी है कि सूर्याभदेव जम्बूद्वीप नामक द्वीप में वर्तमान भरत क्षेत्र में स्थित आमलकप्पा नगरी के आम्रशालवन चैत्य में विराजमान श्रमण भगवान् महावीर की वन्दना करने के लिए जा रहे हैं। अतएव हे देवानुप्रियो ! आप सभी समस्त ऋद्धि से युक्त होकर अविलम्ब – तत्काल सूर्याभदेव के समक्ष उपस्थित हो जायें । सूर्याभदेव की घोषणा की प्रतिक्रिया २२ –— तए णं ते सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा देवीओ य पायत्ताणिया
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy