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राजप्रश्नीयसूत्र दरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्व-पुष्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सव्व-तुडिय-सद्द सण्णिणाएणं महया इड्डीए, महया जुईय, महया बलेणं महया समुदएणं महया वर-तुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुअंग-दुंदुहि-णिग्घोस ] नाइतरवेण णियगपरिवालसद्धिं संपरिवुडा सातिं सातिं जाणविमाणाइं दुरूढा समाणा अकालपरिहीणं चेव सूरियाभस्स देवस्स अंतिए पाउब्भवह ।
___ १९– आभियोगिक देवों से इस अर्थ को सुनने के पश्चात् सूर्याभदेव ने हर्षित, सन्तुष्ट यावत् हर्षातिरेक से प्रफुल्ल-हृदय हो पदाति-अनीकाधिपति (स्थलसेनापति) को बुलाया और बुलाकर उससे कहा
__ हे देवानुप्रिय! तुम शीघ्र ही सूर्याभ विमान की सुधर्मा सभा में स्थित मेघसमूह जैसी गम्भीर मधुर शब्द करने वाली एक योजन प्रमाण गोलाकार सुस्वर घंटा को तीन बार बजा-बजाकर उच्चातिउच्च स्वर में घोषणा-उद्घोषणा करते हुए यह कहो कि___ हे सूर्याभ विमान में रहने वाले देवो और देवियो! सूर्याभविमानाधिपति के हितकर और सुखप्रद वचनों को सुनो सूर्याभदेव आज्ञा देता है कि देवो! जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में स्थित आमलकप्पा नगरी के आम्रशालवन चैत्य में विराजमान श्रमण भगवान् महावीर की वंदना करने के लिए सूर्याभदेव जा रहा है। अतएव हे देवानुप्रियो ! आप लोग समस्त ऋद्धि यावत (आभूषण) आदि की कांति, बल (सेना) समदय-अभ्युदय दिखावे अथवा अपने-अपने आभियोगिक देवों के समुदाय, आदर-सम्मान, विभूति, विभूषा एवं भक्तिजन्य उत्सुकतापूर्वक सर्व प्रकार के पुष्पों, वेश-भूषाओं सुगन्धित पदार्थों, एक साथ बजाये जा रहे समस्त दिव्य वाद्यों शंख प्रणव (ढोलक), पटह (नगाड़ा), भेरी, झालर, खरमुखी, हुडुक्क, मुरज (तबला), मृदंग एवं दुन्दुभि आदि निर्घोष के साथ अपने-अपने परिवार सहित . अपने-अपने यान-विमानों में बैठकर बिना विलंब के अविलंब, तत्काल सूर्याभ देव के समक्ष उपस्थित हो जाओ।
२०– तए णं से पायत्ताणियाहिवती देवे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुटु जाव' हियए एवं देवो ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणित्ता जेणेव सूरियाभे विमाणे जेणेव सभा सुहम्मा, जेणेव मेघोघररिण्यगम्भीरमहुरसद्दा जोयणपरिमंडला सुस्सरा घंटा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं मेघोघरसितगंभीरमहुरसइं जोयणपरिमंडलं सुस्सरं घंटे तिक्खुत्तो उल्लालेति ।
तए णं तीसे मेघोघरसितगंभीरमहुरसदाए जोयणपरिमंडलाए सुस्सराए घंटाए तिक्खुत्तो उल्लालियाए समाणीए से सूरियाभे विमाणे पासायविमाणणिक्खुडावडियसद्दघंटापडिसुयासयसहस्ससंकुले जाए याऽवि होत्था ।
२०– तदनन्तर सूर्याभदेव द्वारा इस प्रकार से आज्ञापित हुआ वह पदात्यनीकाधिपति देव सूर्याभदेव की इस आज्ञा को सुनकर हृष्ट-पुष्ट यावत् प्रफुल्ल-हृदय हुआ और 'हे देव ! ऐसा ही होगा' कहकर विनयपूर्वक आज्ञावचनों को स्वीकार करके सूर्याभ विमान में जहां सुधर्मा सभा थी और उसमें भी जहां मेघमालावत् गम्भीर मधुर ध्वनि करने वाली योजन प्रमाण गोल सुस्वर घंटा थी, वहां आकर मेघमाला जैसी गम्भीर और मधुरध्वनि करने वाली उस
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देखें सूत्र संख्या १३