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राजप्रश्नीयसूत्र पानी छलककर बाहर निकले तो वह बैठने वाली स्त्री अथवा पुरुष मान-संगत कहलाता है। तराजू पर तोलने पर यदि अर्धभार प्रमाण तुले तो वह उन्मान-संगत और अपने अंगुल से एक सौ आठ अंगुल की ऊंचाई हो तो वह प्रमाणसंगत कहलाता है। ___जैन परिभाषा के अनुसार शब्द और रूप ये दो काम में और गंध, रस एवं स्पर्श भोग में ग्रहण किये जाते हैं। दोनों का समावेश करने के लिए कामभोग' शब्द का उपयोग किया जाता है। भगवान् का पदार्पण और राजा का दर्शनार्थ गमन
६- सामी समोसढे । परिसा निग्गया । राया जाव [नयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे पेच्छिज्जमाणे हिययमाला-सहस्सेहिं अभिणंदिज्जमाणे-अभिणंदिज्जमाणे, मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे विच्छिप्पमाणे, वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे अभिथुव्वमाणे, कंति-दिव्यसोहग्गगुणेहिं पत्थिन्जमाणे पत्थिन्जमाणे, बहूणं नरनारीसहस्साणं दाहिणहत्थेण अंजलिमालासहस्साइंपडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे, मंजुमंजुणा घोसेणं पडिबुज्झमाणे-पडिबुज्झमाणे, भवणपंतिसहस्साई समइच्छमाणे समइच्छमाणे आमलकप्पाए नयरीए मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव अंबसालवणचेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूर-सामंते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासइ, पासित्ता आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवेइ, ठवित्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अवहट्ट पंच रायकउहाइं तंजहा खग्गं छत्तं उप्फेसं वाहणाओ वालवीयणं; जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तं जहा
(१) सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए, (२) अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए, (३) एगसाडियं उत्तरासंगकरणेणं, (४) चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं, (५) मणसो एगत्तभावकरणेणं ।
समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणयाए] पज्जुवासइ ।
६- आमलकप्पा के बाहर स्थित आम्रशालवन चैत्य में स्वामी-श्रमण भगवान् महावीर पधारे। वंदना करने परिषद् निकली। राजा भी यावत् (हजारों दर्शकों की सहस्रों नेत्रमालाओं द्वारा बार-बार निरीक्षित होता हुआ, हजारों मनुष्यों के हृदयसहस्रों द्वारा पुनः पुनः अभिनंदित होता हुआ, हजारों जनों की मनोरथों रूपी मालासहस्रों द्वारा स्पर्शित-स्पृष्ट होता हुआ, सुन्दर और उदार वचनावली-सहस्रों द्वारा बारंबार स्तुत—स्तुतिगान किया जाता हुआ, शारीरिक ओज सौन्दर्य, लावण्य-दिव्य सौभाग्य और गुणों के कारण जनपद के द्वारा प्रार्थित होता हुआ, हजारों नर-नारियों की अंजलि रूप मालासहस्रों को दाहिने हाथ से स्वीकार करता हुआ, मंजुल मधुर स्वरों द्वारा किये गये जय-जय घोषों से प्रतिबोधित-संबोधित होता हुआ एवं हजारों भवन-पंक्तियों को पार करता हुआ आमलकप्पा नगरी