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________________ रानी धारिणी राजपुरुषों द्वारा कृत विडम्बनाओं — राज्यविरुद्ध कार्यों से रहित था । ऐसे राज्य का प्रशासन करते हुए राजा अपना समय बिताता था । ९ विवेचन — राजा सेय का विशेष वृत्तान्त अन्यत्र देखने को नहीं मिलता है । स्थानांगसूत्र के आठवें ठाणा में श्रमण भगवान् महावीर के पास दीक्षित आठ राजाओं में एक नाम 'सेय' भी है किन्तु यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि यह 'सेय' राजप्रश्नीयसूत्र गत राजा है अथवा अन्य कोई । टीकाकार अभयदेवसूरि ने इसी सेय को आठ दीक्षित राजाओं में माना है । सेय के संस्कृत रूपान्तर श्वेत और श्रेय दोनों होते हैं । आचार्य मलयगिरिसूरि ने अपनी टीका में 'श्वेत' का प्रयोग किया है। रानी धारिणी ५— [तस्स णं सेयरण्णो ] धारिणी [ नामं ] देवी [ होत्था सुकुमालपाणिपादा अहीणपडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरा लक्खण- वंजण-गुणोववेया माण- उम्माण- पमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंग - सुंदरंगी ससिसोमागार - कंतपियदंसणा, सुरूवा, करयलपरिमियपसत्थतिवलियमज्झा, कुंडलुल्लिहियगंडलेहा कोमुइरयणियर - विमलपडिपुण्णसोमवयणा सिंगारागारचारुवेसा संगयगयहसिय-भंणिय-चिट्ठिय-विलास - ललिय-संलावनिउणजुत्तोवयारकुसला सुंदर - थण - जघण-वयण-करचरण-नयण-लावण्ण-विलासकलिया सेएण रण्णा सद्धिं अणुरत्ता अविरत्ता इट्ठे सद्द-फरिस - रसरूव-गंधे पंचविहे माणुस्सर कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरइ ] । ५- (उस सेय राजा की) धारिणी (नाम की) देवी— पटरानी ( थी) । ( वह सुकुमाल – अतिकोमल हाथ पैर वाली थी। शरीर और पांचों इन्द्रियां अहीन शुभ लक्षणों संपन्न एवं प्रमाणयुक्त थीं। वह शंख, चक्र आदि शुभ लक्षणों तथा तिल, मसा आदि व्यंजनों और सौभाग्य आदि स्त्रियोचित गुणों से युक्त थी, मान-माप उन्मान - तोल और प्रमाण - नाप से परिपूर्ण— बराबर थी, सभी अंग परिपूर्ण और सुगठित होने से सर्वांग सुन्दरी थी, चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाली, कमनीय, प्रियदर्शना और सुरूपवती थी । उसका मध्य भाग—कटि भाग मुट्ठी में आ जाये, इतना पतला और प्रशस्त था, त्रिवली से युक्त था और उसमें बल पड़े हुए थे। उसकी गंडलेखा — कपोलों पर बनाई हुई पत्रलेखा कुंडलों से घर्षित होती रहती थी । उसका मुखमंडल चंद्रिका के समान निर्मल और सौम्य था, अथवा कार्तिक पूर्णिमा के चन्द्र के समान विमल परिपूर्ण और सौम्य था । उसका सुन्दर वेष मानो श्रृंगार रस का स्थान था । उसकी चाल, हासपरिहास, संलाप - बोलचाल, भाषण, शारीरिक और नेत्रों की चेष्टायें आदि सभी संगत थीं। वह पारस्परिक वार्तालाप करने में निपुण थी, कुशल थी, उचित आदर, सेवा-शुश्रूषा आदि करने में कुशल थी । उसके सुन्दर जघन—कमर से नीचे का भाग, स्तन, मुख, हाथ, पैर, लावण्य - विलास से युक्त थे और दर्शकों के चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न करने वाली, दर्शनीय रूपवती और अतीव रूपवती थी और वह सेय राजा में अनुरक्ता, अविरिक्ता होकर पांचों इन्द्रियों के इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, वर्ण एवं गंध रूप मनुष्योचित काम-भोगों का अनुभव करती हुई समय व्यतीत करती थी । विवेचन — पानी से लबालब भरे हुए कुंड में पुरुष या स्त्री के बिठाने पर एक द्रोण (प्राचीन नाप) प्रमाण
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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