SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८ राजप्रश्नीयसूत्र राजा सेय ४— [ तत्थ णं आमलकप्पाए नयरीए ।] सेओ राया [ होत्था, महया - हिमवंत-महंतमलयमंदरमहिंदसारे अच्छंतविसुद्धरायकुलवंसप्पसूए निरंतरं रायलक्खणविराइयंगमंगे बहुजण - बहुमाणपूइए सव्वगुणसमिद्धे खत्तिए मुद्धाभिसित्ते माउपिउसुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मणुस्सिंदे जणवयपिया जणवयपाले जणवयय-पुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्धे पुरिसआसीविसे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अड्डे दित्ते वित्ते वित्थिन्नविपुलभवणसयण-आसण-जाण-वाहणाइण्णे बहुधणबहुजायरूव - रजए आओग-पओगसंपत्ते विच्छड्डियपउरभत्तपाणे बहुदासी - दास - गो-महिस- गवेलगप्पभूए पडिपुन्नजंत- कोस- कोट्ठागार - आउहधरे बलवं दुब्बलपच्चामित्ते, ओहयकंटयं मलियकंटयं उद्धियकंटयं अप्पडिकंटयं ओहयसत्तुं मलियसत्तुं उद्धियसत्तुं निज्जयसत्तुं पराइयसत्तुं ववगयदुब्भिक्खदोसमारि-भयविप्पमुक्कं खेमं सिवं सुभिक्खं पसंतडिंबडमरं रज्जं पसासेमाणे विहरइ । ] समान, ४— उस आमलकप्पा नगरी में सेय नामक राजा राज्य करता था । वह मनुष्यों में महा हिमवंत पर्वत, महामलय पर्वत, मंदर (मेरु) पर्वत और महेन्द्र नामक पर्वत आदि के समान श्रेष्ठ — प्रधान था । अत्यन्त विशुद्ध राजकुल एवं वंश में उत्पन्न हुआ था। उसके समस्त अंगोपांग राजचिह्नों और लक्षणों से सुशोभित थे। अनेक लोगों द्वारा वह बहुमान-सन्मान और सत्कार प्राप्त करता था अथवा अनेक लोगों द्वारा सम्मानपूर्वक पूजा जाता था। शौर्य आदि सर्वगुणों से समृद्ध था । क्षत्रिय था । मूर्धाभिषिक्त राजा था। माता-पिता के सुसंस्कारों से सम्पन्न था। स्वभाव से दयालु था। कुलमर्यादा का करने वाला और पालक था । क्षेम - कुशल का कर्त्ता और रक्षक होने से मनुष्यों में इन्द्र के जनपद का पिता, जनपद- देश का पालक, जनपद का पुरोहित — मार्गदर्शक, अद्भुत कार्यों को करने वाला और मनुष्यों में श्रेष्ठ था। पुरुषार्थों का साधक होने से पुरुषों में प्रधान, निर्भय एवं बलिष्ठ होने से पुरुषों में सिंह, शूरवीर होने से पुरुषों में व्याघ्र, सफल कोप वाला होने से पुरुषों में आशीविष सर्प, दयालु, कोमल हृदय होने से पुरुषों में कमल, शत्रुओं का नाश करने से पुरुषों में उत्तम गंधहस्ती के समान था । समृद्ध, प्रभावशाली अथवा अभिमानियों का मानमर्दक, विख्यात-प्रख्यात था। विस्तीर्ण और विपुल भवन, शैया, आसन, यान, वाहन का स्वामी था । उसके कोष और कोठार सदा धन, स्वर्ण, चांदी, धान्य से भरे रहते थे । अर्थोपार्जन के उपायों का जानकार था। उसके यहां भोजन करने के बाद शेष रहा भोजन भिखारियों, याचकों में बांट दिया जाता था। सेवा के लिए बहुत से दास-दासी उसके पास रहते थे। उसकी गोशाला में गायों, भैंसों एवं बकरियों की प्रचुरता थी । उसके यंत्रागार, कोष, कोठार और शस्त्रागार पूरी तरह से भरे रहते थे। वह शारीरिक और मानसिक बल से बलवान् था अथवा उसकी सेना बलविक्रमशाली थी । दुर्बलों का मित्रहितैषी था । प्रजा को पीड़ित करने वाले कांटे रूप चोर और डाकू आदि न होने से उसका राज्य प्रजाकंटकों से रहित था। देश में उपद्रव, दंगा-फसाद करने वालों को दंड देकर शांत कर दिये जाने से मर्दितकंटक था। गुंडों बदमाशों को देश निकाला दे देने से उद्धृतकंटक था। विरोधियों का विनाश कर देने से अपहृतकंटक था । इसी प्रकार उसका राज्य अपहृतशत्रु था, निहतशत्रु था, मथितशत्रु था, उद्धृतशत्रु था, निर्जितशत्रु था, पराजितशत्रु था एवं दुर्भिक्ष दुर्गुण दुर्व्यसन, महामारी से रहित था । शत्रुभय से मुक्त था। जिससे वह क्षेम-कुशम, सुभिक्ष युक्त तथा विघ्नों एवं राजकुमार आदि
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy