SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैत्य वर्णन सत्य और कामना सफल करने वाला समझते थे। यज्ञ में इसके नाम पर हजारों लोग दान देते थे और बहुत से लोग आकर इस आम्रशालवन चैत्य की जयजयकार करते हुए अर्चना भक्ति करते थे। विवेचन-आम्रशालवन चैत्य के उपर्युक्त वर्णन से हमें तत्कालीन लोक-संस्कृति एवं जन मानस का ठीकठीक परिचय मिलता है कि चैत्य जन सामान्य के लिए मनोरंजन, क्रीड़ा आदि के स्थान होने के साथ-साथ अपनी कामनाओं की पूर्ति हेतु आहुति—जात देने आदि के भी केन्द्र थे। ३- असोगवर पायवे, पुढवी सिलापट्टए, वत्तव्वया उववाइयगमेणं णेया । ३- उस चैत्यवर्ती श्रेष्ठ अशोकवृक्ष और पृथ्वीशिलापट्टक का वर्णन उववाईसूत्र के अनुसार जानना चाहिए। विवेचन- अशोक वृक्ष के उल्लेख से ऐसा प्रतीत होता है कि वृक्षपूजा की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। इसके पीछे वृक्षों की उपयोगिता, अथवा किसी पुण्य पुरुष का स्मरण अथवा वहम कारण है, यह विचारणीय और शोध का विषय है। ___ उववाईसूत्र में अशोक वृक्ष, पृथ्वीशिलापट्टक का विस्तार से वर्णन किया है। वही सब वर्णन यहां समझ लेने की सूत्र में सूचना की है। उसका सारांश इस प्रकार है चैत्य को चारों ओर से घेरे हुए वनखण्ड के बीचोंबीच एक विशाल, ऊंचा दर्शनीय और असाधारण रूपसौन्दर्यसम्पन्न अशोक वृक्ष था। वह अशोकवृक्ष भी और दूसरे लकुच, शिरीष, धव, चन्दन, अर्जुन, कदम्ब, अनार, शाल आदि वृक्षों से घिरा हुआ था। ये सभी वृक्ष मूल; कंद, स्कन्ध, छाल, शाखा, प्रवाल-पत्र, पुष्प, फल और बीज से युक्त थे। इनकी शाखाप्रशाखायें चारों और फैली हुई थीं और पत्र, पल्लव, फल-फूलों आदि से सुशोभित थीं। इन वृक्षों पर मोर, मैना, कोयल, कलहंस, सारस आदि पक्षी इधर-उधर उड़ते और मधुर कलरव करते रहते थे। भ्रमर-समूह के गुंजारव से व्याप्त थे। ___इस वृक्षघटा की शोभा में विशेष वृद्धि करने के लिए कहीं जाली झरोखों वाली चौकोर बावड़ियां, कहीं गोल बावड़ियां, कहीं पुष्करणियां आदि बनी हुई थीं। पद्मवेल, नागरवेल, अशोकवेल, चंपावेल, माधवीवेल आदि वेलें इस वृक्षराजि से लिपटी हुई थीं और ये सभी वेलें फूलों के भार से नमी रहती थीं। उक्त वनराजि से विराजित उस उत्तम अशोकवृक्ष पर रत्नों से बने हुए, देदीप्यमान, दर्शनीय, स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य-युगल और दर्पण —ये आठ मंगल एवं वज्र रत्न की डांडी वाले, कमल जैसे सुगंधित, काले, नीले, लाल, पीले और सफेद चामर लटके हुए थे। ___इस अशोक वृक्ष के नीचे एक चौकोर शिलापट्ट था, जो जामुन, नेत्रगोलक, अंजन वृक्ष, सघन मेघमाला, भ्रमरसमूह, काजल, नील गुटिका, भैंसे के सींग आदि से भी अधिक कृष्ण वर्ण का था। दर्पण की तरह इसमें देखने वालों के प्रतिबिम्ब पड़ते थे। पाट की मोटाई में चारों ओर हीरा, पन्ना, मणि, माणक, मोती आदि से चित्र बने हुए थे और उसका स्पर्श रुई, मक्खन, आक की रुई आदि से भी अधिक सुकोमल था। इस प्रकार का रत्नमय रम्य शिलापाट उस अशोकवृक्ष के नीचे रखा था।
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy