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________________ आपको सुरक्षित रखने के लिए यह उत्सव होता था ।१३९ 'भूतमह' नवम उत्सव था। हिन्दू पुराणों में भूतों को भयंकर प्रकृति के धनी और मांसभक्षी कहा है। भूतों को बलि देकर प्रसन्न किया जाता था । भूतमह चैत्री पूर्णिमा को मनाया जाता था । महाभारत में तीन प्रकार के भूतों का उल्लेख है— उदासी, प्रतिकूल और दयालु । १४० रात्रि में परिभ्रमण करने वाले भूत 'प्रतिकूल' माने गये हैं । १४१ भूतगृह से पीड़ित मानवों की चिकित्सा भूतविद्या के द्वारा की जाती थी। कहा जाता है— 'कृत्तियावण' में सभी वस्तुएं मिलती थीं। वहां पर भूत भी मिलते थे । राजा प्रद्योत के समय उज्जयिनी में इस प्रकार की दुकानें थीं, जहां पर मनोवाञ्छित वस्तुएं मिलती थीं । भृगुकच्छ का एक व्यापारी उज्जयिनी में भूत को खरीदने के लिए आया था। दुकानदार ने उसे बताया— आपको भूत तो मिल जायेगा पर आपने यदि उस भूत को कोई काम न बताया तो वह आपको समाप्त कर देगा। व्यापारी भूत को लेकर वहां से प्रस्थित हुआ। वह उसे जो भी कार्य बताता चुटकियों में सम्पन्न कर देता था । अन्त में भूत से तंग आकर उस व्यापारी ने एक खम्भा गाड़ दिया और भूत से कहा— मैं जब तक तुम्हें नया काम नहीं बताऊं तब तक तुम इस खम्भे पर चढ़ते-उतरते रहो ।१४२ सारांश यह है कि इन उत्सवों की बहुत अधिक धूमधाम होती थी, जिससे कोई भी धूमधाम को देख कर प्रायः यही समझा जाता था कि आज कोई इसी तरह का उत्सव होगा । चित्त सारथी के अन्तर्मानस में भी यही जिज्ञासा हुई थी — जनमेदिनी को जाते हुए देखकर । वस्तुतः ये उत्सव किसी धर्म और सम्प्रदायविशेष से सम्बन्धित न होकर लोकजीवन से सम्बन्धित थे । इन उत्सवों के पीछे लौकिक कामनायें थीं। जनमानस में समाया भय भी इन उत्सवों को मनाने के लिए बाध्य करता था। श्वेताम्बिका में केशी श्रमण चित्त सारथी को जब यह परिज्ञात हुआ कि केशी कुमार श्रमण पधारे हैं तो वह दर्शन और प्रवचन - श्रवण करने के लिए पहुंचा। प्रवचन को श्रवण कर वह इतना भावविभोर हो गया कि उसने श्रमणोपासक के द्वादश व्रत ग्रहण कर अपनी अनन्त श्रद्धा उनके चरणों में समर्पित की। जब चित्त सारथी श्वेताम्बिका लौटने लगा तो उसने केशी कुमारश्रमण से अभ्यर्थना की- आप श्वेताम्बिका अवश्य पधारें। पुनः-पुनः निवेदन करने पर केशी श्रमण ने कहा कि वहां का राजा प्रदेशी अधार्मिक है, इसलिए मैं वहां कैसे आ सकता हूं ? चित्त ने निवेदन किया भगवन् ! प्रदेशी के अतिरिक्त वहां पर अनेक भावुक आत्माएं रहती हैं, जो अपने बीच आपको पाकर धन्यता अनुभव करेंगी। सम्भव है, आपके पावन प्रवचनों से प्रदेशी के जीवन का भी काया कल्प हो । केशी कुमार श्रमण को लगा कि चित्त सारथी के तर्क में वजन है। वहां जाने से धर्म की प्रभावना हो सकती है। चित्त सारथी ने केशीकुमार की मुद्रा से समझ लिया कि मेरी प्रार्थना अवश्य ही मूर्त रूप लेगी। उसने श्वेताम्बिका पहुंच कर सर्वप्रथम उद्यानपाल को सूचित किया कि केशी श्रमण अपने ५०० शिष्यों के साथ यहां पर पधारेंगे, अतः १३९. (क) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति २४, पृष्ठ- १२० (ख) बृहत्कल्पसूत्र - ६. १२ तथा भाष्य १४०. (क) देखिए — इपिक माइथॉलोजी, स्ट्रासबर्ग १९१५ - डा. हॉपकिन्स ई. डब्ल्यू. (ख) कथासरित्सागर, सोमदेव, सम्पादक — पेंजर, भाग - १, परि. १. १४२४-२८ प्रका. लन्दन १४१. इपिक माइथॉलोजी, स्ट्रासबर्ग १९१५, पृष्ठ - ३६ – डा. हॉपकिन्स ई. डब्ल्यू. १४२. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति—३. ४२१४ - २२ [३१]
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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