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के पुत्र और युद्ध के देवता माने गये हैं। तारक, राक्षस और देवताओं के युद्ध में 'स्कन्द' देवताओं के सेनापति के रूप में नियुक्त हुए थे। उनका वाहन 'मयूर' था। 'स्कन्दमह' उत्सव आसौज की पूर्णिमा को मनाया जाता था।१९५ ___'रुद्रमह' तृतीय उत्सव था। वैदिक दृष्टि से रुद्र ग्यारह थे। वे इन्द्र के साथी शिव और उसके पुत्रों के अनुचर तथा यम के रक्षक थे। व्यवहारभाष्य के अनुसार रुद्र-आयतनों के नीचे ताजी हड्डियां गाड़ी जाती थीं।११६
'मुकुन्दमह' चतुर्थ उत्सव था। महाभारत में मुकुन्द यानि बलदेव को लांगुली-हलधर कहा है।५७ हल उसका अस्त्र है। भगवान् महावीर छद्मस्थ अवस्था में गोशालक के साथ 'आवत्त' ग्राम में पधारे थे। वहां पर वे बलदेवगृह में विराजे १८ जहां पर बलदेव को अर्चना होती थी। ___'शिवमह' पांचवां उत्सव था। हिन्दू साहित्य के अनुसार शिव भूतों के अधिपति, कामदेव के दहनकर्ता और स्कन्द के पिता थे। उन्होंने विष का पान किया तथा आकाश से गिरती हुई गंगा को धारण किया। उनके सम्मान में वैशाख मास में उत्सव मनाया जाता है। भगवान् महावीर के समय शिव की अर्चा प्रचलित थी। ढोंढसिवा अचितशिव माना जाता था, उसकी भी उपासना शिव के रूप में ही होती थी।११९
___ 'वैश्रमणमह' छठा उत्सव था। वैश्रमण उत्तर दिशा का लोकपाल और समस्त निधियों का अधिपति था। जीवाजीवाभिगम में वैश्रमण को यक्षों का अधिपति और उत्तर दिशा का लोकपाल कहा है ।१२° हॉपकिन्स ने वैश्रमण को राक्षस और गुह्यकों का अधिपति कहा है।१२२
_ 'नागमह' सातवां उत्सव था। वैदिक पुराणों के अनुसार सर्पदेवता सामान्य रूप से पृथिवी के अधःस्थल में निवास करते हैं, जहां पर शेषनाग अपने सहस्र फन से पृथ्वी के अपार भार को सम्हाले हुए हैं१२२ जैन दृष्टि से सगर चक्रवर्ती के जण्हुकुमार आदि साठ हजार पुत्र थे। उन्होंने दण्डरत्न से अष्टापद पर्वत के चारों ओर एक खाई खोदी
और गंगा के नीर से उस खाई को भरने लगे। पर खाई का पानी नागभवनों में जाने से नागराज क्रुद्ध हुआ। उसने नयन-विष महासर्प प्रेषित किये, जिन्हें देखते ही सगरपुत्र भस्म हो गये। महाभारत में नाग तक्षक का उल्लेख है, जिसने अपने भयंकर विष से वटवृक्ष को और राजा परीक्षित के भव्य भवन को जलाकर नष्ट कर दिया था। कालियानाग ने यमुना नदी के नीर को विषयुक्त कर दिया था।१२३ साकेत में एक महान् नागगृह था।२४ ज्ञाताधर्मकथा
११५. आवश्यकचूर्णि पृष्ठ-३१५ ११६. व्यवहारभाष्य-७/३१३, पृष्ठ-५५. अ. ११७. महाभारत-देखिए, वैष्णविज्म, शैविज्म एण्ड माइनर रिलिजियस सिस्टम, पृष्ठ-१०२. आदि ११८. (क) आवश्यकनियुक्ति-४८१
(ख) आवश्यकचूर्णि, पृष्ठ २९४ ११९. (क) बृहत्कल्पभाष्य-५.५९२८
(ख) आवश्यक चूर्णि, पृष्ठ-३१२ १२०. जीवाजीवाभिगम, ३ पृष्ठ २८१ १२१. ड्ब् हॉपकिन्स ई. डब्ल्यू.-इपिक माइथॉलोजी, स्ट्रासबर्ग १९१५ १२२. इपिक माइथॉलोजी, स्ट्रासबर्ग १९१५–डा. हॉपकिन्स ई. डब्ल्यू. १२३. इण्डियन सर्पेण्ट लोर, लंदन-१९२६, फोगल जे. १२४. (क) अर्थशास्त्र-५.२.९०.४९. पृष्ठ-१७६ (ख) इण्डियन सर्पेण्ट लोर. लंदन-१९२६. फोगल जे.
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