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ज्ञान के धारक थे और बाद में चार ज्ञान के धारक हो गये होंगे। पर यह तर्क भी उचित नहीं है, क्योंकि यदि वे चार ज्ञान के धारक बाद में बने तो श्रावस्ती में चित्त सारथी को चातुर्याम का उपदेश किस प्रकार देते ? उनके नाम के साथ 'पार्खापत्यीय' विशेषण किस प्रकार लगता? इसलिए स्पष्ट है कि दोनों पृथक्-पृथक् व्यक्ति हैं। किन्तु नामसाम्य होने से अनेक मनीषियों को भ्रम हो गया है और उन्होंने दोनों को एक माना है। विविध, उत्सव
___ केशीकुमार के आगमन के समाचारों ने जन-जन के अन्तर्मानस में एक अपूर्व उल्लास का संचार किया। वे नदी के प्रवाह की तरह धर्मदेशना श्रवण करने के लिए प्रस्थित हुए। उनके तीव्र कोलाहल को सुनकर चित्त सारथी सोचने लगा—क्या आज इस नगर में कोई इन्द्र, स्कन्द, रुद्र, मुकुन्द, शिव, वैश्रमण, नाग, यक्ष, भूत, स्तूप, चैत्य, वृक्ष, गिरि, गुफा, कूप, नदी, सागर और सरोवर का उत्सव मनाया जा रहा है ? जिससे सभी लोग उत्साह के साथ जा रहे हैं। यहां पर जिन इन्द्र, स्कन्द आदि के उत्सवों का वर्णन है, उसका उल्लेख ज्ञाताधर्मकथा, व्याख्याप्रज्ञप्ति,१०८ भगवती,०९ निशीथर आदि अन्य आगमों में भी आया है। इन्द्र वैदिक साहित्य का बहुत ही लब्धप्रतिष्ठ देव रहा है। वह समस्त देवों में अग्रणी था। प्राचीन युग में 'इन्द्रमह' उत्सव सभी उत्सवों में श्रेष्ठ उत्सव माना जाता था और सभी लोग बड़े उत्साह से इसे मनाते थे।१११ निशीथसूत्र में इन्द्र, स्कन्द, यक्ष और भूत नामक महामहों का वर्णन है। जो क्रमशः आषाढ़, आसौज, कार्तिक और चैत्र की पूर्णिमाओं को मनाया जाता था। इन्द्रमह आदि उत्सवों में लोग मनपसन्द खाते-पीते, नाचते, गाते हुए आमोद-प्रमोद में तल्लीन रहते थे।१२ इन उत्सवों में अत्यधिक शोरगुल होता था, जिससे श्रमणों को स्वाध्याय की मनाई की गई थी। जो खाद्य पदार्थ उत्सव के दिन तैयार किया जाता था, यदि वह अवशेष रह जाता तो प्रतिपदा के दिन उसका उपयोग करते। अपने सम्बन्धियों को भी उस अवसर पर बुलाते ।११३ 'इन्द्रमह' के दिन धोबी से धुले हुए स्वच्छ वस्त्र लोग पहनते थे।१४
दूसरा उत्सव 'स्कन्दमह' का था। ब्राह्मण पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार स्कन्द अथवा कार्तिकेय महादेव. १०७. ज्ञाताधर्मकथा ८, पृष्ठ १०० १०८. व्याख्याप्रज्ञप्ति-३.१ १०९. भगवती-३.१ ११०. निशीथसूत्र-८.१४ १११. (क) आवश्यकचूर्णि, पृष्ठ-२१३ (ख) इपिक माइथोलॉजी, स्ट्रासबर्ग १९१५
-डा. हॉपकिन्स ई., पृष्ठ १२५ (ग) भास–ए स्टडी, लाहौर-१९४०-पुलासकर ए.डी., पृ. ४४० (घ) कथासरित्सागर, जिल्द-८, पृष्ठ-१४४-१५३ (ङ) महाभारत-१.६४.३३
(च) रंगस्वामी ऐयंगर कमैमोरेशन वॉल्युम, पृष्ठ ४८० ११२. (क) निशीथ-१९/६०३५
(ख) रामायण-४/१६/३६
(ग) डा. हॉपकिन्स ई. डब्ल्यू., पृष्ठ १२५ ११३. निशीथचूर्णि-१९.६०६८ ११४. आवश्यकचूर्णि-२, पृष्ठ-१८१
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