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________________ प्रकार माना है। सूर्याभदेव विविध प्रकार के गीत और नाट्य प्रदर्शित करने के पश्चात् भगवान् महावीर को नमस्कार कर स्वस्थान को प्रस्थित हो गया। गणधर गौतम ने सूर्याभदेव के विमान के सम्बन्ध में जिज्ञासा प्रस्तुत की। भगवान् ने विस्तार से विमान का वर्णन सुनाया। साथ ही गौतम ने पुनः यह जिज्ञासा प्रस्तुत की कि यह दिव्य देवऋद्धि सूर्याभदेव को किन शुभ कर्मों के कारण प्राप्त हुई है ? प्रभु महावीर ने समाधान करते हुए उसका पूर्वभव सुनाया, जो प्रस्तुत आगम का द्वितीय विभाग है। केकयार्ध : जनपद 'केकय अर्ध' जनपद था। जैन साहित्य में साढ़े पच्चीस आर्य क्षेत्रों की परिगणना की गई है। उन देशों और राजधानियों का उल्लेख बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति प्रज्ञापना और प्रवचनसारोद्धार में हुआ है। इन देशों में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव पैदा हुए। इसलिए इन्हें आर्य जनपद कहा है।५ जिन देशों में तीर्थंकर, प्रभृति महापुरुष पैदा होते हैं, वह आर्य हैं।९६ आर्य और अनार्य जनपदों की व्यवस्था के सम्बन्ध में आवश्यकचूर्णि,७ तत्त्वार्थभाष्य ९८ तत्त्वार्थराजवार्तिक ९ आदि में चर्चाएं हैं। हम यहां विस्तार से चर्चा में न जाकर यह बताना चाहेंगे कि 'केकयार्ध' की परिगणना अर्धजनपद में की गई थी। यों केकय नाम के दो प्रदेश थे। एक की अवस्थिति खिंवाड़ा नमक की पहाड़ी अथवा शाहपुर झेलम-गुजरात में थी। दूसरे की अवस्थिति श्रावस्ती के उत्तरपूर्व में नेपाल की तराई में थी। सम्भवतः यही केकय साढ़े पच्चीस देशों में अभिहित है। उसकी राजधानी श्वेताम्बिका थी। यह श्रावस्ती और कपिलवस्तु के मध्य में नेपालगंज के पास में होनी चाहिए। इस देश के आधे भाग को आर्य देश स्वीकार किया है और आधे भाग को अनार्य देश। आधे भाग में आदिमवासी जाति निवास करती होगी। बौद्ध साहित्य में सेयविया (श्वेताम्बिका) को 'सेतव्या' लिखा है। भगवान् महावीर का भी वहां पर विचरण हुआ था। यह स्थान श्रावस्ती (सहेट-महेट) से १७ मील और बलरामपुर से ६ मील की दूरी पर अवस्थित था। इसके उत्तरपूर्व में 'मृगवन' नामक उद्यान था। इस नगरी का अधिपति राजा प्रदेशी था। दीघनिकाय में राजा का नाम 'पायासि' दिया गया है। वह राजा अत्यन्त अधार्मिक, प्रचण्ड क्रोधी और महान् तार्किक था। गुरुजनों का सन्मान करना उसने सीखा ही नहीं था और न वह श्रमणों और ब्राह्मणों पर निष्ठा ही रखता था। उसकी पत्नी का नाम 'सूर्यकान्ता' था और पुत्र का नाम 'सूर्यकान्त' था, जो राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोश, कोष्ठागार और अन्तःपुर की पूर्ण निगरानी रखता था। राजा प्रदेशी के चित्त नामक एक सारथी था। दीघनिकाय में चित्त के स्थान पर 'खत्ते' शब्द का प्रयोग हुआ है। 'खत्ते' का पर्यायवाची संस्कृत में क्षत-क्षता है, जिसका अर्थ सारथी है। वह सारथी साम, दाम, दण्ड, भेद, प्रभृति ९३. ९२. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति—१. ३२६३ प्रज्ञापनासूत्र-१.६६ पृष्ठ १७३ ९४. प्रवचनसारोद्धार, पृष्ठ ४४६ ९५. 'इत्थुप्पत्ति जिणाणं, चक्कीणं रामकण्हाणं ।' __'यत्र तीर्थंकरादीनामुत्पत्तिस्तदाS, शेषमनार्यम्!' ९७. आवश्यकचूर्णि ९८. तत्त्वार्थभाष्य-३/१५ ९९. तत्त्वार्थराजवार्तिक–३/३६, पृष्ठ २०० -प्रज्ञापना-१ —प्रवचनसारोद्धार, पृष्ठ-४४६ [२६]
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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