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________________ २६. रिभित । २७. अंचितरिभित । २८. आरभट । १ २९. भसोल (अथवा भसल) २ ३०. आरभटभसोल। ८३ ३१. उत्पात, निपात, संकुचित, प्रसारित, रयारइय, भ्रांत और संभ्रांत क्रियाओं से सम्बन्धित अभिनय । ३२. महावीर के च्यवन, गर्भसंहरण, जन्म, अभिषेक, बालक्रीडा, यौवनदशा, कामभोगलीला, ४ निष्क्रमण, तपश्चरण, ज्ञानप्राप्ति, तीर्थप्रवर्तन और परिनिर्वाण सम्बन्धी घटनाओं का अभिनय [६६-८४]। अन्य आगमों में अनेक स्थलों पर नाट्यविधियों का उल्लेख हुआ है। उत्तराध्ययन की वृत्ति के अनुसार जब ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती पद पर आसीन हुआ तो उसके सामने एक नट 'मधुकरीगीत' नामक नाट्यविधि प्रदर्शित करता है ।" सौधर्म इन्द्र के सामने सुधनी सभा में 'सौदामिनी' नाटक करने का भी उल्लेख है। स्थानांगसूत्र में चार प्रकार के नाट्यों का वर्णन है— अंचित, रिभित, आरभट, भसोल ।" भरतनाट्यशास्त्र में एक सौ आठ कर्ण माने जाते हैं। कर्ण का अर्थ है— अंग और प्रत्यंग की क्रियाओं को एक साथ करना । अंचित को तेईसवां कर्ण माना है। प्रस्तुत अभिनय में पैरों को स्वस्तिक के आकार में रखा जाता है। दाहिने हाथ को कटिहस्त (नृत हस्त की एक मुद्रा) और बायें हाथ को व्यावृत तथा परिवृत कर नाक के पास अंचित करने से यह मुद्रा बनत " चिन्तातुर व्यक्ति हाथ पर ठोडी टिका कर सिर को नीचा रखता है, वह मुद्रा 'अंचित' है। राजप्रश्नीय में यह पच्चीसवां नाट्यभेद माना गया है । 'रिभित' के सम्बन्ध में विशेष जानकारी ग्रन्थों में नहीं है । 'आरभट' माया, इन्द्रजाल, संग्राम, क्रोध, उद्भ्रांत प्रभृति चेष्टाओं से युक्त तथा वध, बन्धन आदि से उद्धत नाटक 'आरभटी' है । 'साहित्यदर्पण ९° में इसके चार प्रकार बताये गये हैं। आरभट को राजप्रश्नीय में नाट्यभेद का अठारहवां प्रकार माना है । 'भसोल' स्थानांग वृत्ति में इस सम्बन्ध में कोई विशेष विवरण नहीं दिया है।" राजप्रश्नीय में इसे उनतीसवां ८१. नाट्यशास्त्र में 'आरभटी' एक वृत्ति का नाम बताया गया है। ८२. नाट्यशास्त्र में भ्रमर । 1 ८३. नाट्यशास्त्र में रेचित । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में रेचकरेचित पाठ है। आरभटी शैली से नाचने वाले नट मंडलाकार रूप में रेचक अर्थात् कमर, ग्रीवा को मटकाते हुए रास नृत्य करते थे। —वासुदेवशरण अग्रवाल, हर्षचरित, पृष्ठ ३३ ८४. इससे महावीर की गृहस्थावस्था का सूचन होता है। ८५. ८६. ८७. ८८. ८९. उत्तराध्ययन टीका - १३, पृष्ठ १९६ उत्तराध्ययन टीका - १८, पृष्ठ २४० अ चउव्विहे णट्टे पण्णत्ते, तं जहा —— अंचिए, रिभिए, आरभडे, भसोले भारतीय संगीत का इतिहास, पृष्ठ ४२५ आप्टे डिक्शनरी में आरभट शब्द के अन्तर्गत उद्धृत— मायेन्द्रजालसंग्रामक्रोधोद्भ्रान्तादिचेष्टितैः । संयुक्ता वधबन्धाद्यैरुद्धतारभटी मता ॥ साहित्यदर्पण - ४२० ९०. ९१. नाट्यगेयाभिनयसूत्राणि सम्प्रदायाभावान्न विवृतानि । [ २५ ] -स्थानाङ्ग ४/६३३ —स्थानांगवृत्ति, पत्र- २७२
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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