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कलाचार्य का सम्मान
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की सुर-ताल की समानता को जानना, १०. द्यूत-जुआ खेलना, ११. लोगों के साथ वार्तालाप और वाद-विवाद करना, १२. पासों से खेलना, १३. चौपड़ खेलना, १४. तत्काल काव्य–कविता की रचना करना, १५. जल और मिट्टी को मिलाकर वस्तु निर्माण करना, अथवा जल और मिट्टी के गुणों की परीक्षा करना, १६. अन्न उत्पन्न करने अथवा भोजन बनाने की कला, १७. नया पानी उत्पन्न करना अथवा औषधि आदि के संयोग-संस्कार से पानी को शुद्ध करना, स्वादिष्ट पेय पदार्थों का बनाना, १८. नवीन वस्त्र बनाना, वस्त्रों को रंगना, सीना और पहनना, १९. विलेपनविधि शरीर पर लेप करने की विधि, २०. शय्या बनाना और शयन करने की विधि जानना, २१. मात्रिक छन्दों को बनाना और पहचानना, २२. पहेलियां बनाना और बुझाना, २३. मागधिक मागधी भाषा में गाथा-छन्द आदि बनाना, २४. निद्रायिका नींद में सुलाने की कला, २५. प्राकृत भाषा में गाथा आदि बनाना, २६. गीति-छंद बनाना, २७. श्लोक (अनुष्टुप छंद) बनाना, २८. हिरण्ययुक्ति-चांदी बनाना और चांदी शुद्ध करना, २९. स्वर्णयुक्ति स्वर्ण बनाना और स्वर्ण शुद्ध करना, ३०. आभूषण-अलंकार बनाना, ३१. तरुणीप्रतिकर्म-स्त्रियों का श्रृंगार-प्रसाधन करना, ३२. स्त्रियों के शुभाशुभ लक्षणों को जानना, ३३. पुरुष के लक्षण जानना, ३४. अश्व के लक्षण जानना, ३५. हाथी के लक्षण जाना, ३६. मुर्गों के लक्षण जानना, ३७. छत्र लक्षण जानना, ३८. चक्र-लक्षण जानना, ३९. दंड-लक्षण जानना, ४०. असि-(तलवार) लक्षण जानना, ४१. मणि-लक्षण जानना, ४२. काकणी-(रत्नविशेष) लक्षण जानना, ४३. वास्तुविद्या—गृह, गृहभूमि के गुण-दोषों को जानना, ४४. नया नगर बसाने आदि की कला, ४५. स्कन्धावार-सेना के पड़ाव की रचना करने की कला, ४६. मापने-नापने-तोलने के साधनों को जानना, ४७. प्रतिचार शत्रु सेना के सामने अपनी सेना को चलाना, ४८. व्यूह युद्ध में शत्रु सेना के समक्ष अपनी सेना का मोर्चा बनाना, ४९. चक्रव्यूह–चक्र के आकार की मोर्चाबन्दी करना, ५०. गरुडव्यूह-गरुड के आकार की व्यूह रचना करना, ५१. शकटव्यूह रचना, ५२. सामान्य युद्ध करना, ५३. नियुद्ध-मल्लयुद्ध करने की कला, कुश्ती लड़ना, ५४. युद्ध-युद्ध शत्रु सेना की स्थिति को जानकर युद्धविधि को बदलने की कला अथवा घमासान युद्ध करना, ५५. अट्ठि (यष्ठि—लाठी या अस्थि-हड्डी) से युद्ध करना, ५६. मुष्ठियुद्ध करना, ५७. बाहुयुद्ध करना, ५८. लतायुद्ध करना, ५९. इष्वस्त्र-शस्त्र-बाण बनाने की कला अथवा नागबाण आदि विशिष्ट बाणों के प्रक्षेपण की विधि, ६०. तलवार चलाने की कला, ६१. धनुर्वेद–धनुष-बाण सम्बन्धी कौशल, ६२. चांदी का पाक बनाना, ६३. सोने का पाक बनाना, ६४. मणियों के निर्माण की कला अथवा मणियों की भस्म आदि औषधि बनाना, ६५. धातुपाक औषधि के लिए स्वर्ण आदि धातुओं की भस्म बनाना, ६६. सूत्रखेल रस्सी पर खेल-तमाशे, क्रीडा करने की कला, ६७. वृत्तखेल-क्रीडाविशेष, ६८. नालिकाखेल–द्यूत-जुआविशेष, ६९. पत्र को छेदने की कला, ७०. पार्वतीय भूमि छेदने की कला,७१. मूछित को होश में लाने और अमूछित को मृततुल्य करने की कला, ७२. काक, घूक आदि पक्षियों की बोली और उससे अच्छे-बुरे शकुन का ज्ञान करना। कलाचार्य का सम्मान
२८३- तए णं से कलायरिए तं दढपइण्णं दारगं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरि कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य गंथओ य करणओ य सिक्खावेत्ता सेहावेत्ता अम्मापिऊणं उवणेहिति ।
तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असणपाण