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________________ दृढप्रतिज्ञ का लालन-पालन २०३ स्वजन-सम्बन्धियों एवं दास-दासी आदि परिजनों, परिचितों को आमंत्रित करेंगे। इसके बाद स्नान, बलिकर्म, तिलक आदि कौतुक - मंगलप्रायश्चित्त यावत् आभूषणों से शरीर को अलंकृत करके भोजनमंडप में श्रेष्ठ आसनों पर सुखपूर्वक बैठकर मित्रों यावत् परिजनों के साथ विपुल अशनादि रूप भोजन का आस्वादन, विशेष रूप में आस्वादन करेंगे, उसका परिभोग करेंगे, एक दूसरे को परोसेंगे और भोजन करने के पश्चात् आचमन - कुल्ला आदि करके स्वच्छ, परम शुचिभूत होकर उन मित्रों, ज्ञातिजनों यावत् परिजनों का विपुल वस्त्र, गंध, माला, अलंकारों आदि से सत्कार - सन्मान करेंगे और फिर उन्हीं मित्रों यावत् परिजनों से कहेंगे देवानुप्रियो ! जब से यह दारक माता की कुक्षि में गर्भ रूप से आया था। तभी से हमारी धर्म में दृढ़ प्रतिज्ञाश्रद्धा हुई है, इसलिए हमारे इस बालक का 'दृढप्रतिज्ञ' यह नाम हो । इस तरह उस दारक के माता-पिता 'दृढ़प्रतिज्ञ' यह नामकरण करेंगे। इस प्रकार से उसके माता-पिता अनुक्रम से १. स्थितिपतिता, २. चन्द्र - सूर्यदर्शन, ३. धर्मजागरण, ४ . नामकरण, ५. अन्नप्राशन, ६. प्रतिवर्धापन ( आशीर्वाद, अभिनंदन-सन्मान समारोह), ७. प्रचंक्रमण (पैरों चलनाडग भरना और शब्दोच्चारण करना), ८. कर्णवेधन, ९. संवत्सर प्रतिलेख ( प्रथम वर्ष का जन्मोत्सव ) और १०. चूलोपनयन (मुंडनोत्सव — झडूला उतारना) आदि तथा अन्य दूसरे भी बहुत से गर्भाधान, जन्मादि सम्बन्धी उत्सव भव्य समारोह के साथ प्रभावक रूप में करेंगे। दृढप्रतिज्ञ का लालन-पालन २८१ – तए णं दढपतिपणे दारगे पंचधाईपरिक्खित्ते —— खीरधाईए - मंडणधाईण-मज्जणधाईए- अंक धाईए-कीलावणधाईए, अन्नाहि बहूहिं खुज्जाहिं, चिलाइयाहिं, वामणियाहिं, asभियाहिं, बब्बराहिं बउसियाहिं, जोहियाहिं, पण्णवियाहिं, ईसिणियाहिं, वारुणियाहिं, लासियाहिं, लाउसियाहिं, दमिलीहिं, सिंहलीहि, पुलिंदीहिं, आरबीहिं, पक्कणीहिं, बहलीहिं, मुरंडीहिं, सबरीहिं, पारसीहिं, णाणादेसी-विदेस - परिमंडियाहिं इंगियचिंतियपत्थियवियाणाहिं सदेसणेवंत्थगहियवेसाहिं निउणकुसलाहिं विणीयाहिं चेडियाचक्कवालतरुणिवंदपरियालपरिवुडे वरिसधरकंचुड्महयरवंदपरिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे उवनचिज्जमाणे अंकाओ अंकं परिभुज्जमाणे उवगिज्जेमाणे उवलालिज्जमाणे उवगूहिज्जमाणे अवतासिज्जमाणे परियंदिज्जमाणे परिचुंबिज्जमाणे रम्मेसु मणिकोट्टिमतलेसु परंगमाणे गिरिकंदरमल्लीणे विव चंपगवरपायवे णिव्वाघायंसि सुहंसुहेण परिवड्डिस्सइ । २८१ — उसके बाद वह दृढप्रतिज्ञ शिशु १. क्षीरधात्री — दूध पिलानेवाली धाय, २. मंडनधात्री वस्त्राभूषण पहनाने वाली धाय, ३. मज्जनधात्री — स्नान कराने वाली धाय, ४. अंकधात्री —— गोद में लेने वाली धाय और ५. क्रीडापनधात्री — खेल खिलाने वाली धाय—इन पांच धायमाताओं की देखरेख में तथा इनके अतिरिक्त इंगित ( मुख आदि की चेष्टा ), चिन्तित (मानसिक विचार), प्रार्थित (अभिलषित) को जानने वालीं, अपने-अपने देश के वेष को पहनने वालीं, निपुण, कुशल- प्रवीण एवं प्रशिक्षित ऐसी कुब्जा (कुबड़ी), चिलातिका (चिलात-किरात नामक देश में उत्पन्न), वामनी (चीनी), वडभी ( बड़े पेट वाली), बर्बरी ( बर्बर देश की ), बकुश देश की, योनक देश की, पल्हविका (पल्हव देश की), ईसिनिका, वारुणिका (वरुण देश की ), लासिका (तिब्बत देश की ), लाकुसिका
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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